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Sunday, February 17, 2013

बलात्कार, मीडिया, सरकार, समाज और समाधान..

समस्याएं थोपी तो नहीं जा रहीं ?

हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? बीते वर्ष पूरे देश को झकझोरने वाले दिल्ली गैंग रेप और हालिया बदायूं में दो बहनों की बलात्कार के बाद पेड़ पर लटका दिए जाने की घटनाओं के आलोक में यदि इस प्रश्न का जवाब देश के बच्चों से पूछा जाए तो उनमें अनेक बच्चों का भी जवाब होगा-बलात्कार।
ऐसा क्यों है ? निस्संदेह, बलात्कार एक राष्ट्रीय कोढ़ जैसी समस्या है, और इस समस्या के कारण देश की महिलाओं, युवतियों, किशोरियों और यहां तक कि तीन-चार वर्ष की बच्चियों के साथ ही पूरे देश को पड़ोसी देशों के साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में तक शर्मसार होना पड़ा है। पर बच्चों के भी दिल-दिमाग में भी बलात्कार जैसा विषय क्यों ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम नहीं कोई और हमारी समस्याएं तय कर रहा है, या समस्याएं तय कर हम पर थोप रहा है। 

विगत वर्षों में पहले केंद्र और दिल्ली सरकार के राष्ट्रमंडल खेलों, टूजी स्पेक्ट्रम सहित अनेकानेक घोटाले ‘देश’ की चिंता का सबब बने रहे। बाबा रामदेव ने दल-बल के साथ देश का काला धन देश में वापस लाने के आह्वान के साथ दिल्ली कूच किया तो काला धन से अधिक बाबा रामदेव देश की मानो समस्या हो गए। खबरिया चैनल दिल्ली में उनके प्रवेश से लेकर मंत्रियों द्वारा समझाने, फिर उनके मंच पर उपस्थित चेहरों, इस बीच आए समझौते के पत्र, रात्रि में हुए लाठीचार्ज और महिलाओं के वस्त्रों में रामदेव के दिल्ली से वापस लौटने की कहानी में काला धन का मुद्दा कहीं गुम ही हो गया। फिर अन्ना हजारे जन लोकपाल के मुद्दे पर दिल्ली आए तो यहां भी कमोबेश जन लोकपाल की जरूरत से अधिक अन्ना की गिरफ्तारी, उनके अनशन के एक-एक दिन बीतने के साथ उनके स्वास्थ्य की चिंता जैसी बातें देश की समस्या बन गईं, और इन समस्याओं को लेकर कथित तौर पर ‘पूरा देश’ ‘जाग’ भी गया। फिर अन्ना टीम में बिखराव व मतभेद पर ‘देश’ चिंतित रहा। आखिरकार केजरीवाल के ‘आम आदमी पार्टी’ बनाने के बाद ‘देश’ की चिंता कुछ कम होती नजर आई। लेकिन बीते वर्ष के आखिर में दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में हुई गैंग रेप की घटना ने तो मानो देश को झंकायमान ही करके ही रख दिया। 

इन सभी घटनाक्रमों के पीछे क्या चीज ‘कॉमन’ थी। एक-दिल्ली, दो-इन घटनाओं को जनता तक लाने वाला मीडिया, तीन-सरकार और चार-आक्रोशित आम आदमी।

क्या है इन चारों का आपसी संबंध ? दिल्ली निस्संदेह देश की राजधानी और देश का दिल है। लेकिन क्यों केवल दिल्ली की खबरें ही हमारी चिंता का सबब बनती हैं। क्या बाकी देश की कोई समस्याएं नहीं हैं। क्या बलात्कार देश भर में नहीं हो रहे। क्या देश में महंगाई, भूख, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और भ्रष्टाचार जैसी अनेकानेक समस्याएं नहीं हैं। यदि हैं, क्या कहीं कोई बड़ी गड़बड़ तो नहीं है। मीडिया क्यों नहीं गांवों में आ सकता। क्यों उत्तराखंड के लालकुआं में ऑफिस कर्मी युवती के साथ बलात्कार के बाद उसके प्राइवेट नाजुक अंगों में रुपए व पेन आदि ठूंसने और उत्तराखंड के पहले करीब चार दर्जन लोगों की डीएनए जांच के बाद रिस्ते के फूफा के ही 13 बर्षीय बच्ची की बलात्कार बाद हत्या करने के मामले की खबरंे राष्ट्रीय मीडिया की ‘पट्टी’ में भी नहीं आती। यह टीआरपी के नाम पर जो चाहे दिखाने, और उसी को राष्ट्रीय चिंता व समस्या बना देने का कोई खेल तो नहीं है।

ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं हम पर समस्याएं थोपी तो नहीं जा रही हैं। कि लो, अभी कुछ दिन यह समस्या लो, इससे बाहर कुछ ना सोचो। थोड़े दिन बाद, अब इस समस्या की घुट्टी पियो, और थोड़े दिन बाद अगली समस्या का काढ़ा पियो और अपनी वास्तविक समस्याओं को भूलकर मस्त रहो। यह कोई साजिश तो नहीं चल रही कि देश भर के लोगों की भावनाओं को चाहे जिस तरह से भड़काओ, और उनसे अपने लिए माल-मत्ता समेटो। लोगों की भावनाओं का बाजार सजा दो। देश की वास्तविक समस्याओं से लोगों का ध्यान भटका दो, और अपनी ऐश काटो। कोई बलात्कार जैसी समस्याओं का भी व्यापार तो नहीं कर रहा कि अभी मोदी अपनी जीत को ‘हैट्रिक-हैट्रिक’ कहते हुये बहुत उछल रहा है। अच्छा हुआ, बलात्कार हो गया, इसी गोटी से घोड़े को पीट डालो। रामदेव को महिलाओं के वस्त्र पहनाकर, अन्ना को केजरीवाल अलग करवाकर और केजरीवाल को राजनीति में लाकर पहले ही पीट चुके है। शतरंज की बिसात पर कोई बचना नहीं चाहिए। राजनीति में इतना दम है कि प्यांदे से राजा को ‘शह-मात’ दे दें।

कौन कर सकता है ऐसा ? मीडिया और सरकार ? मीडिया ने निस्संदेह एक हद तक शहरी और कस्बाई जनता को जगा दिया है। वहीं सरकार और राजनीतिक दलों को मीडिया से दूर सोई जनता को जगाने का हुनर मालूम है। वह चुनाव के दिन मीडिया से कोसों दूर, सोई जनता को जगाकर मतदान स्थल तक ले जाने और अपने पक्ष में वोट डलवाने में सफल होते हैं। अच्छा हो वह एक दिन के बजाए रोज के लिए इस पूरी जनता को जगा दें। और जो एक चौथाई लोग कथित तौर पर मीडिया और सोशियल मीडिया से जागे हैं, चुनाव के दिन अपनी आदत से ही सो ना जाऐं।

क्या वास्तव में जाग गया पूरा देशः

दिल्ली गैंग रेप कांड और इसके बाद जो कुछ भी हुआ है, वह कई मायनों में अभूतपूर्व है। इस नृशंशतम् घटना के बाद कहा जा रहा है कि देश ‘जाग’ गया है, 125 करोड़ देशवासी जाग गए हैं, लेकिन सच्चाई इसके कहीं आसपास भी नहीं है। न देश अन्ना के आंदोलन के बाद जागा था, और न ही अब जागा है। हमारी आदत है, हम आधुनिक सुख-सुविधाओं के साथ आराम तलब होते चले जा रहे है। हम पहले जागते नहीं, और कभी देर से जाग भी गए, तो वापस जल्दी ही सो भी जाते हैं। यदि जाग गए होते तो घटना के ठीक बाद बस से नग्नावस्था में फेंके गए युवक व युवती को यूं घंटों खुद को लपेटने के लिए कपड़े की गुहार लगाते हुए घंटों वहीं नहीं पड़े रहने देते।

और तब ना सही, करोड़ों रुपए की मोमबत्तियां जलाने-गलाने के बाद ही सही, जाग गये होते तो अब देश में कोई बलात्कार न हो रहे होते, जबकि दिल्ली की घटना के बाद तो देश में जैसे बलात्कार के मामलों की (या मामलों के प्रकाश में आने की) बाढ़ ही आ गई है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि कि देश की बड़ी आबादी को दिल्ली के कांड की जानकारी ही नहीं है, और देश की अन्य समस्याओं, भूख, गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई व भ्रष्टाचार के बीच वह अपने लिए दो जून की रोटी जुटाने में सो ही नहीं पाता, तो जागेगा क्या। वह आज भी आजादी के पहले जैसी ही जिंदगी जीने को अभिशप्त है। उसके पास चुनाव के दौर से सैकड़ों की संख्या में ‘उगे’ खबरिया चौनल दूर, रेडियो तक मयस्सर नहीं है। फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशियल साइटों का तो उसने नाम भी न सुना होगा। सच्चाई है, वह मीडिया से नहीं जागते। उन्हें जगाने का हुनर राजनीतिक दलों को ही आता है, जो उन्हें चुनाव के दौरान घर से बाहर निकालकर बूथों तक लाकर अपने पक्ष में वोट भी डलवा देते हैं। और कथित तौर पर ‘जागे’ लोग वोट डालते वक्त ‘सो’ जाते हैं, यह भी सच्चाई है। लिहाजा, यह गलतफहमी ही कही जाएगी, कि देश जाग चुका है।

आक्रोश के पीछे भी कोई साजिश तो नहीं ?

इसके बावजूद दिल्ली के साथ जिस तरह देश भर में महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी कंधे से कंधे मिलाते हुए ‘बलात्कारियों को फांसी दो’ के नारे के साथ निकल पड़े, दिल्ली में छात्र मानो 1997-97 में इंडोनेशिया के देशव्यापी छात्र आंदोलन की यादों को ताजा करने लगे और उनके समर्थन में देश भर के अनेकों छोटे-बढ़े कस्बों में खासकर युवा जुड़ गए, और दिल्ली में तो हजारों की भीड़ करीब-करीब निरंकुश होती हुई राष्ट्रपति भवन की ओर बढती हुई मिश्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को गद्दी से उतारने के बाद ही थमने वाली जनक्रांति जैसा नजारा पेश करने लगी।वह सरकार ही नहीं, देशवासियों के लिए भी कान खड़े करने वाला और मौजूदा शासन व्यवस्था के साथ ही देश के लिए भी खतरे की घंटी है। लेकिन आश्चर्य की बात रही कि ऐसे हालातों पर चर्चा केवल लाठी चार्ज और एक पुलिस कर्मी की शहादत को विवादित कर पीछे धकेल दी गई। यह सोचने की जरूरत भी महसूस नहीं की गई कि ऐसा क्यों हुआ। यह आक्रोश स्वतः स्फूर्त था कि इसके पीछे भी कोई साजिश थी। देश में चल रहे अनेक अन्य जरूरी मुद्दे, गैस सब्सिडी को सीमा में बांधने, महंगाई के आसमान छूने, आरटीआई के बावजूद नन्हे बच्चों के स्कूलों में एडमिशन न हो पाने के साथ ही भ्रष्टाचार, कालाधन, जन लोकपाल, पदोन्नति में आरक्षण, अन्ना, रामदेव, केजरीवाल सभी इस आंदोलन के आगे बौने पड़ गए, जिनके द्वारा भी कभी देश को जगा देने की बात कही जा रही थी । सारे देश को जगाने वाले अन्ना या रामदेव कहीं नहीं दिखे। रामदेव और केजरीवाल दिल्ली आए भी तो उन्हें भीड़ को भड़काने के आरोप में मुकदमे ठोंककर वापस भेज दिया गया। कहीं ऐसा तो न था कि गुजरात में मोदी की हैट्रिक के रूप में प्रचारित की जा रही जीत, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ ही बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों के साथ ही देश भर के सरकारी कर्मचारियों को प्रभावित करने वाले पदोन्नति में आरक्षण के बिल के लोक सभा में पास न हो पाने जैसे मुद्दों को इस नृशंशतम घटना के पीछे नेपथ्य में धकेल दिया गया।

इस आंदोलन में एक खास बात यह भी रही कि कमोबेश पहली बार सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की छात्र व युवा ब्रिगेड एनएसयूआई व युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता भी इस मामले का विरोध करने सड़कों पर उतरे। लिहाजा, यह दिल्ली सहित देश भर में ऐसा व्यापक विरोध प्रदर्शन रहा, जिसमें हर वर्ग के लोग शामिल हुए, और खास तौर पर यदि सत्तारूढ़ दल की विचारधारा के लोग भी आंदोलन में शामिल रहे या शामिल होने का मजबूर हुए, तो यह वक्त है जब सरकार को संभल जाना चाहिए। अन्ना, रामदेव के आंदोलनों को दबाने, के लिए जिस तरह के राजनीतिक प्रपंच किए गऐ, उनसे अब काम चलाने से बाज आना चाहिए। आश्चर्य न होगा, यदि ऐसे में जल्द ही किसी सामान्य विषय पर भी लोग इसी तरह गुस्से का इजहार करने लगे।

दिल्ली का बलात्कार न पहला, न आखिरीः

यह सही है कि दिल्ली का बलात्कार न तो पहला था, और ना ही आखिरी, उत्तराखंड के लालकुआं में आफिसकर्मी युवती से बलात्कार का मामला भी कम वीभत्स नहीं था, जिसमें बलात्कारियों ने युवती से बलात्कार के बाद उसके खास अंगों में पेन और रुपए ठूंस दिए थे, और उसकी हत्या भी कर डाली थी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार मामले की सीबीआई जांच की संस्तुति कर चुकी है, पर आज भी जांच शुरू नहीं हुई है। इसके अलावा लालकुआ की ही आठ साल की मासूम संजना के बलात्कार के बाद हत्याकांड का मामला। ऐसे ही और भी अनेकों मामले हैं। लेकिन, दिल्ली जैसा आक्रोश पहले कभी देखने को नही मिला। निस्संदेह, इस आक्रोश के पीछे केवल दिल्ली की छात्रा के अपमान का रोष ही नहीं, वरन देश की हर मां-बहन की इज्जत, मान-सम्मान का प्रश्न आ खड़ा हुआ था। यह देश भर में पूर्व में हुई ऐसी अन्य घटनाओं के साथ लोगों के दिलों में भीतर राख में दहल रहे शोलों और खासकर छात्राओं, किशोरियों द्वारा समाज में कथित बराबरी के बावजूद झेली जा रही जिल्लत का स्वतः स्फूर्त नतीजा था। मौजूदा व्यवस्था से बुरी तरह आक्रोशित जनता को मौका मिला, और उन्होंने अपने गुस्से को व्यक्त कर दिया।

इस सबसे थोड़ा आगे निकलते हैं। कल तक मीडिया, समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी बलात्कार पीड़िता की खबरें धीरे-धीरे पीछे होती चली जा रही हैं। सोशियल मीडिया में लोगों की प्रोफाइल पर लगे काले धब्बे भी हटकर वापस अपनी या किसी अन्य खूबसूरत चेहरे की आकर्षक तस्वीरों से गुलजार होने लगे हैं। आगे अखबरों, चौनलों में कभी संदर्भ के तौर पर ही इस घटना का इतना भर जिक्र होगा कि 16 दिसंबर 2012 को पांच बहशी दरिंदों ने दिल्ली के बसंत विहार इलाके में चलती बस में युवती से बलात्कार किया था, और उसे उसके मित्र के साथ महिपालपुर इलाके में नग्नावस्था में झाड़ियों में फेंक दिया था। यह नहीं बताया जाएगा कि करीब आधे घंटे तक सैकड़ों लोग उन्हें बेशर्मी से देखते हुए निकल गऐ थे, और आखिर पुलिस ने पास के होटल से चादर मंगाकर उन्हें ढका और दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया, और जहां से हृदयाघात होने के बावजूद कमोबेश मृत अवस्था में ही उसे राजनीतिक कारणों से 27 दिसंबर को सिंगापुर ले जाकर वहां के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 29 दिसंबर की सुबह तड़के 2.15 बजे उसने दम तोड़ दिया, लेकिन पूरे दिन रोककर रात्रि के अंधेरे में उसके शरीर को दिल्ली लाया गया और 30 की सुबह तड़के परिवार के कथित तौर पर विरोध के बीच उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। ऐसा इसलिए ताकि लोग आक्रोषित ना हों, कानून-व्यवस्था के भंग होने की कोई स्थिति न उत्पन्न हो। क्योंकि पूरा देश कथित तौर पर जाग गया था।

क्या कानून से रुक सकते हैं बलात्कारः 

वादे कितने ही किये जायें पर बेहद लंबी कशमकश और दांव-पेंच भरी कानूनी लड़ाई के बाद शायद उसके बलात्कारियों और हत्यारों को शायद फांसी दे ही दी जाए। इससे पहले बलात्कारियों, हत्यारों को फांसी की मांग करने वाले अनेक अधिवक्ता उन्हें फांसी देने का भी विरोध करेंगे। न्यायाधीश महोदय भी पूछेंगे कि क्यों फांसी ही दी जाए, आखिर हमारे कानून की भावना जो ठहरी-”एक भी निर्दोष न फंसे“ (चाहे जितने दोषी बच जाएं, जबकि अनगिनत निर्दोष सींखचों के पीछे ट्रायल के नाम पर ही बर्षों से सजा भुगतते रहें हैं।)

हमारी संसद, पश्चिमी दुनिया के लिव-इन संबंधों को अपने यहां भी कानूनी मान्यता देने व विवाह जैसी सामाजिक संस्था के लिए पंजीकरण की कानूनी बाध्यता बनाने और यौन संबंधों में आपसी सहमति के लिए आयु को कम करने की पक्षधरता के बीच शायद बलात्कार को भी ”रेयर“ और ”गैर रेयर“ के अलावा कुछ अन्य नए वर्गों में भी वर्गीकृत कर दे। उम्र (नाबालिगों से सहमति के यौन संबंध भी बलात्कार की श्रेणी में हैं) व लिंग (महिलाओं, पुरुषों व किन्नरों के आधार पर तो बलात्कार के लिए भी कमोबेश अलग-अलग कानूनी प्राविधान) के साथ ही हमारे माननीय बलात्कार को जाति-वर्ण के आधार पर भी बांट दें, यानी जाति विशेष की महिलाओं से बलात्कार पर अधिक या कम सजा के प्राविधान हो जाएं तो आश्चर्य न होगा। ऐसे-ऐसे तर्क भी आ सकते हैं कि दूसरों के केवल गुप्त यौननांगों पर बलात आक्रमण या प्रयोग ही क्यों बलात्कार कहा जाए, पूरा शरीर और अन्य अंगों पर क्यों नहीं। ऐसे तर्क भी आने लगे हैं कि महिला बलात्कार के बाद ‘जिंदा लाश’ क्यों कही जाए। बलात्कार होना मौत से बदतर क्यों माना जाए। बहरहाल, इन सब कानूनी बातों और केवल इस एक मामले में कड़ा न्याय मिल जाने के बावजूद क्या दिल पर हाथ रखकर कहा जा सकता है कि देश में ऐसी घटनाओं पर रोक लग जाएगी । क्या हमारी बहन-बेटियां सुरक्षित हो जाएंगी ?

बलात्कारः मनोवैज्ञानिक व सामाजिक पहलूः 

बलात्कार की समस्या को समग्रता से समझें तो मानना होगा हमारी बहुत सी समस्याएं लगती तो शारीरिक हैं, लेकिन होती मानसिक हैं। बलात्कार भी एक तरह से तन से पहले मन की बीमारी है। और इसकी जड़ में समाज के अनेक-शिक्षा, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर के विभेद जैसे अनेक कारण भी हैं। कानून, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था का प्रभाव तो बहुत देर में आता है।

इन समस्याओं पर सतही चर्चा करने के बजाए गहन मंथन करने की भी जरूरत है। अधिकतर लोग क्यों बलात्कार करते हैं ? इससे पहले एक बात पर शायद सभी सहमत हों कि यौन आवश्यकता हर जीवधारी में भोजन की तरह ही मूलभूत होती है, और पीढ़ियों के आगे बढ़ने के लिए जरूरी भी है। मनुष्य ने इस आवश्यकता को विवाह नाम के सामाजिक बंधन से बांध दिया है। विवाह में सबसे पहले, खासकर पुरुषों की हर वर्ग में और आर्थिक रूप से समर्थ वर्ग में महिलाओं (पुत्रियों) की पसंद का ध्यान रखा जाता है। विवाह से पूर्व कम उम्र में, जबसे मनुष्य के बच्चों के कोमल मन के साथ मस्तिष्क काम करना शुरू करने लगता है, छुपा कर रखे गए व गुप्त बताए जाने वाले खुद के एवं विरोधी लिंग के अंगों के प्रति जानने की इच्छा बढ़ने लगती है। यही समय है जब माता-पिता बच्चों की उनके अंगों के बारे में बताए और अच्छे-बुरे की जानकारी दें, साथ ही स्कूलों में नैतिक, संस्कारवान शिक्षा दी जाए। जरूरी समझी जाए तो यौन शिक्षा भी दी जाए।

जरूरी हो तो भूख और सैक्स का मनोविज्ञान भी समझा जाए। भूख को पेट की और सैक्स को शरीर की आग और दोनों को बेहद खतरनाक कहा जाता है। सैक्स की आग में शरीर की भूख के साथ ही मन की भी बड़ी भूमिका होती है, जिस पर मनुष्य की शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी अत्यधिक प्रभाव डालती है। निठारी कांड इन दोनों भूखों को नृशंशतम् मामला था जिसमें कहा जाता है कि इन दोनों भूखों के भूखे भेड़िये दर्जनों मासूम बच्चों का बलात्कार करने के बाद उनके शरीर को भी खा गए। अफसोस, हमारी याददाश्त बेहद कमजोर होती है। हम इस कांड को कमोबेश भूल चुके हैं। मीडिया भी उसी दिन याद करता है, जब न्यायालय से इस मामले में कोई अपडेट आती है। वर्षों से मामला न्यायालय में चल रहा है। और इस ”रेयरेस्ट ऑफ द रेयर“ मामले में दोषियों को कब सजा होगी, कुछ नहीं कहा जा सकता।

एक आंकलन के अनुसार हमारे देश में केवल चार प्रतिशत बलात्कार के मामले ही अनजान लोगों द्वारा किए जाते हैं, तथा 96 प्रतिशत बलात्कार जानने-पहचानने वालों द्वारा किए जाते हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि बलात्कार के साथ ही अवैध संबंध बनाने वालो का क्या मनोविज्ञान है।

आयु के आधार परः

इसे पहले आयु के आधार पर देखते हैं। कम उम्र के बच्चों (लड़के-लड़कियों दोनों में, भारत में अभी कम, विदेशों में काफी) में टीवी, सिनेमा व इंटरनेट की देखा-देखी और सैक्स व जननांगों के बारे में जानने की इच्छा, के कारण सैक्स संबंध बनाए जाते हैं। युवावस्था में युवक-युवतियों दोनों में शारीरिक और यौन अंगों का विकास होने के साथ यौन इच्छाएं भी नैसर्गिक रूप से बढ़ती हैं। सामाजिक व्यवस्था भी उन्हें बताती जाती है कि अब आप विवाह एवं यौन संबंध बनाने योग्य हो गऐ हो। यहां आकर व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थित उसकी यौन इच्छाओं को प्रभावित करती है। अच्छे आर्थिक व सामाजिक स्तर के लोगों में इस स्थिति में अपने लिए मनपसंद जीवन साथी प्राप्त करने की अधिक सहज स्थिति रहती है, जबकि कमजोर तबके के लोगों के लिए यह एक कठिन समय होता है। इस कठिन समय पर यदि व्यक्ति को उसका मनपसंद साथी ना मिल पाए तो उसे अच्छी और संस्कारवान, नैतिक शिक्षा ही संबल व शक्ति प्रदान कर सकती हैं। अन्यथा उनके भटकने का खतरा अधिक रहता है। इस उम्र में कुछ लोग, खासकर युवक शराब जैसे बुरे व्यसनों की गिरफ्त में फंसकर और अपनी कथित पौरुष शक्ति के प्रदर्शन की कोशिश में युवतियों से छेड़छाड़ और बलात्कार की हद तक जा सकते हैं। 

इससे आगे प्रौढ़ अवस्था में विवाहितों और अविवाहितों में यौन इच्छाऐं (मन के स्तर से ही) पारिवारिक स्तर पर तृप्त या अतृप्त होने पर निर्भर करती हैं। और यह भी बहुत हद तक मनुष्य की आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक स्तर पर निर्भर करता है। इन तीनों स्तरों के समन्वित प्रभाव से ही मनुष्य स्वयं में एक तरह की शक्ति या कमजोरी महसूस करता है। शक्ति की कमजोरी की स्थिति में आकर गिरा व्यक्ति इससे बुरा क्या होगा की दशा में बुराइयों को दलदल में और धंसता चला जाता है, जबकि शक्ति के उच्चस्तर स्तर पर आकर भी व्यक्ति में सब कुछ अपने कदमों पर आ गिरने जैसा अहम और कोई क्या बिगाड़ लेगा का दंभ भी उसे ऐसे कुकृत्य करने को मजबूर करता है, और वह अपने बल से अपनी आवश्यकताओं को जबर्दस्ती जुटा भी लेता है, फिर बल से ही लोगों का मुंह भी बंद कराने में अक्सर सफल हो जाता है। कमजोर वर्ग के लोगों के मामले जल्दी प्रकाश में आ जाते हैं। दिल्ली कांड में भी बलात्कारी कमोबेश इसी वर्ग के हैं। कोई ड्राइवर, क्लीनर, कोई सड़क पर फल विक्रेता, और एक कम उम्र युवक। यानी किसी की भी आर्थिक, सामाजिक व शैक्षिक स्थिति बहुत ठीक नहीं है। वहीं, मध्यम वर्ग के लोगों में सहयोग से या ”पटा कर (जुगाड़ से)“ काम निकालने की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है। यह वर्ग कोई बुरा कार्य करने से पहले सामाजिक स्तर पर डर भी अधिक महसूस करता है, इसलिए एक हद तक बुराइयों से बचा भी रहता है।

महिलाओं के प्रति समाज का गैर बराबरी का रवैयाः

दूसरी ओर, बालिकाओं के प्रति आज भी समाज में बरकरार असमानता की भावना बड़ी हद तक जिम्मेदार है। माता-पिता के मन में उसे पैदा करने से ही डर लगता है कि वह पैदा हो जाएगी तो उस ”लक्ष्मी“ के आने के बावजूद बधाइयां नहीं मिलेंगी। उसे, स्कूल-कालेज या कहीं भी अकेले भेजने में डर लगेगा। फिर उस ”पराए धन“ को कैसा घर-बर मिलेगा। और इस डर के कारण बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। पैदा हो जाती है तो उसे यूं ”घर की इज्जत“ कहा जाता है, मानो वह हर दम दांव पर लगी रहती है। ससुराल में भी पह ”पराई“ ही रहती है, और उसे ”डोली पर आने“ के बाद ”अर्थी पर ही जाने“ की घुट्टी पिला दी जाती है कि वह कदम बाहर निकालने की हिमाकत न करे। बंधनों में कोई बंधा नहीं रहना चाहता। वह भी ”सारे बंधन तोड़कर उड़ने“ की कोशिश करती है। आज के दौर में पश्चिमीकरण की हवा में टीवी- सिनेमा और इंटरनेट उसकी ”उड़ानों को पंख“ देने का काम कर रहा है। इस हवा में उसका अचानक ”उड़ना“ बरसों से उसे कैद कर रखने वाला पुरुष प्रधान समाज कैसे बर्दास्त कर ले, यह भी एक चुनौती है। यह संक्रमण और तेजी से आ रहे बदलावों का दौर है। इसलिए विशेष सतर्क रहने की जरूरत है।

लिहाजा, यह कहा जा सकता है कि बलात्कार केवल एक शब्द नहीं, मानव मात्र पर एक अभिशाप है। यह केवल महिलाओं के लिए ही नहीं संपूर्ण समाज और मानवता पर कोढ़ की तरह है। इसके लिए किसी एक व्यक्ति, महिला या पुरुष, जाति, वर्ण, वर्ग को एकतरफा दोषी नहीं ठहराया जा सकता। भले ही एक व्यक्ति बलात्कार करता हो, लेकिन इसके लिए पूरा समाज, हम सब, हमारी व्यवस्था दोषी है। लिहाजा, इसके उन्मूलन के लिए हर तरह के सामूहिक प्रयास करने होंगे। और यह सब हमारे हाथ में है, जब कहा जा रहा है कि दिल्ली की घटना के बाद पूरा देश जाग गया है। ऐसे में अच्छा हो कि अदालत से इस एक मामले में चाहे जो और जब व जैसा परिणाम आऐ, उससे पूर्व ही हम सब मिलकर मानवता पर लगे इस दाग को हमेशा के लिए और जड़ से मिटा दें।

Saturday, March 12, 2011

और उलझ गयी उत्तराखंड की सबसे बड़ी "मर्डर मिस्ट्री"



तिवारी ने नहीं तो फिर किसने मारा बलवन्त को ?
तिवारी व बलवन्त के बीच पुलिस ही थी मौजूद, तार-तार हुईं पुलिस की झोल युक्त कहानी
नवीन जोशी, नैनीताल। 22 अगस्त 2009 की रात्रि प्रदेश के इतिहास में काले शनवार की  रात्रि के रूप में दर्ज है, जब प्रदेश में पहली बार पुलिस थाने के भीतर सत्तारूढ़ दल के ब्लाक प्रमुख के साथ ही ब्लाक प्रमुख संगठन के प्रदे अध्यक्ष पद पर मौजूद बलवन्त कन्याल की हत्या हो गई। घटना के दौरान आरोपी व मक्तूल के अलावा कोई मौके पर था तो केवल पुलिस ही मौके पर थी। पुलिस ने इस अति महत्वपूर्ण मामले में हत्याकाण्ड के चश्मदीद गवाह व वादी के धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान कराने जैसी सामान्य सावधानी भी नहीं बरती, जिसके परिणामस्वरूप गवाहों के मुकरने व पुलिस की कहानी के झोल से हत्याकाण्ड का मुख्य आरोपी तब न्यायालय से दोषमुक्त करार दे दिया गया, जबकि इसी और ऊपरी अदालत ने उसे जमानत देने लायक भी नहीं समझा था। ऐसे में सवाल फीर उठ खड़ा हुआ है, तिवारी ने नहीं तो फिर किसने ब्लाक प्रमुख की हत्या की। क्या हत्यारों को कभी सजा मिल पाऐगी ? ऐसे जघन्य हत्याकाण्ड के बाद भी हमारी व्यवस्था में कालाढुंगी थाने की सुरक्षा दीवार काण्टेदार तार से घेरने के अलावा कोई बदलाव नहीं दिखता। घटनाकाण्ड के समय मौजूद अधिकारी पुन: व्यवस्था में लौट आऐ हैं। उनका बाल-बांका भी नहीं हुआ
बलवन्त कन्याल की हत्या से प्रदेश की कानून व्यवस्था की कई तरह से कलई खुलती चली गई है। शुरू से आरोपों को याद करें, तो पता चलता है कि घटना के तुरंत बाद कालाढूंगी के स्थानीय लोगों के सामने पुलिस कर्मी थाणे के बरामदे को धो रहे थे, जबकि कन्याल की लाश वहीँ पडी थी, यानी पुलिस पर साक्ष्य छुपाने का मुकदमा दर्ज होना चाहिए था, पर हुआ नहीं प्रदे की एसटीएफ द्वारा 22 अगस्त की रात्रि ही देहरादून जेल में बन्द एक अपराधी द्वारा इस घटना की प्रतिक्रिया में कालाढुंगी थाने को फूंकने के निर्देश स्थानीय नेताओं को दिये गऐ, बावजूद पुलिस थाना फूंकने की घटना को नहीं रोक पाई। अब कन्याल हत्याकाण्ड की तफ्तीश व विवेचना में पुलिस कर्मियों की 'कहानी बनाने की कला" न्यायालय में तार-तार हो गई है। मामले की विवेचना में कालाढुंगी थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी राम कुमार सकलानी का कहना है कि 22 अगस्त की रात्रि करीब साढ़े दस-पौने ग्यारह बजे जब थाने के बरामदे में नीरज ने बलवन्त को अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से गोली मारी, उसने (सकलानी ने) नीरज को दबोच लिया व उसका रिवाल्वर जब्त कर माल खाने में जमा करा दिया। वहीं थाने के दरोगा अनिल शाह के अनुसार उसने मुखबीर की सूचना पर नीरज को 24 अगस्त को नैनीताल में जीजीआईसी से कलक्ट्रेट के मार्ग से लाइसेंसी रिवाल्वर के साथ गीरफ्तार किया। यदि यह मान भी लें कि नीरज थाने से पुलिस गिरफ्त से भाग गया था तो भी पुलिस के पास इस विरोधाभास का कोई जवाब नहीं है कि जब एक रिवाल्वर माल खाने में जब्त करा लिया गया था तो फिर वही रिवाल्वर कैसे नीरज के पास से नैनीताल में बरामद किया गया। 
उल्लेखनीय है, मामले में 16 लोगों की गवाही हुई। इस दौरान हत्या की प्राथमिकी दर्ज कराने वाले दिवंगत बलवन्त कन्याल के जीजा वादी शेर सिंह कनवाल सहित पांच गवाह पुलिस की केस डायरी में दर्ज बयानों से पूरी तरह मुकर गऐ। कनवाल ने कमोबे घटना से ही इंकार कर दिया। इस प्रकार गवाहों के 'होस्टाइल (पक्षद्रोही)" यानी बयानों से मुकरने व आरोपी की गिरफ्तारी पर विरोधाभास के मद्देनज़र न्यायालय ने तिवारी को उस पर बलवन्त कन्याल की हत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 147, 148, 504 व 302 के तहत लगाऐ गऐ आरोपों से मुक्त कर दिया। (हांलांकि यह भी गौरतलब है कि शेष 11 गवाह अपने बयानों से नहीं मुकरे थे, पर न्यायलय ने उनके बयानों पर संज्ञान ......... लिया) मामले की विवेचना पुलिस निरीक्षक गंगा सिंह  व महेन्द्र सिंह नेगी द्वारा की गई थी। 
उल्लेखनीय है मामले में थाना प्रभारी सकलानी भी गिरफ्तार किऐ गऐ थे, जमानत मिलने के दौरान उसने तत्कालीन सीओ हरीश चन्द्र सती को वास्तविक दोषी ठहराया था, लेकिन सकलानी और सती दोनों वर्तमान में पूर्व की तरह पुलिस की ड्यूटी कर रहे हैं। अन्य अधिकारियों पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।जबकि  घटना की प्रतिक्रिया में उत्तेजित भीड़ ने एक पुलिस कर्मी सहित थाने को फूंक डाला। यानी जब थाने में सत्तारूढ़ दल के बड़े नेता की हत्या हो रही थी, पुलिस कर्मी मर रहा था व थाना फूंक रहा था, अफसर स्वयं को बचाने की जुगत में लगे हुऐ थे, और उनका बाल-बांका हुआ भी नहीं। कन्याल की हत्या में ही सहआरोपी बताया गया नीरज तिवारी का दोस्त नीरज हर्बिलअभी जमानत पर है, आरोप मुक्त नहीं हुआ है। 
यह भी गौरतलब है कि बलवन्त की हत्या की प्राथमिकी दर्ज कराने वाला व नीरज के दोषमुक्त होने में 'होस्टाइल" होकर प्रमुख भूमिका निभाने वाला उसका जीजा शेर सिंह कनवाल घटना के अगले दिन हुई थाना फूंकने की घटना में स्वयं भी आरोपित था। वह नीरज के साथ ही नैनीताल जेल में रहा, और कमोबेश बलवे के अन्य पांच दर्जन आरोपितों, जिनमें एक दर्जन से अधिक बच्चे भी शामिल थे, से पहले जमानत पर रिहा हुआ। जबकि कई अब भी जेल में हैं, और आरोपों से मुक्ति किसी को नहीं मिल पाई है। चर्चाएँ आम हैं कि जेल में कनवाल का "खर्चा" नीरज ने ही उठाया, उसे जमानत दिलाने में भी सहयोग दिया। नीरज के परिवार द्वारा अभी हाल में करीब एक करोड़ रुपये में जमीन बेछे जाने की चर्चाएँ भी आम हैं। इस प्रकार पूरी कहानी साफ़ हो जाती है। न्यायिक हलकों के लोग तो न्यायपालिका को भी "बेदाग़" नहीं बता रहे।  इस बाबत पुलिस की भूमिका पर पूछे जाने पर एसएसपी मोहन सिंह बनंग्याल का कहना था कि न्यायालय का आदेश पढ़ने के बाद ही वह कोई प्रतिक्रिया करेंगे।
यहाँ यह सवाल भी उठता है कि जब सत्ताधारी दल के एक जनप्रतिनिधि की पुलिस थाने में हत्या होने के बावजूद हत्यारों को सजा दूर, उनकी पहचान भी नहीं हो पाती, ऐसे में आम राज्यवासी का जीवन कितना सुरक्षित है

पुलिस सहित सबके सहयोग से मिली सफलता: नंदिता
नीरज तिवारी को न्यायालय से दोषमुक्ति का आदे मिलने के दौरान उसकी बहन नंदिता भट्ट, बड़े भाई दीपक तिवारी के साथ ही भाई नरे व मयंक, जीजा गणे भट्ट व गोपाल र्मा न्यायालय परिसर में ही मौजूद थे। नंदिता ने भाई की रिहाई को देर से मिली न्याय की जीत करार दिया। उसका कहना था कि पुलिस सहित सभी ओर से मिले सहयोग के कारण यह सम्भव हो पाया। नंदिता पुलिश को सहयोग के लिए आभार ज्ञापित कर रही हैं तो यह गलत भी नहीं है, आखिर पुलिस ने कहानी में कमजोरी छोड़ने सहित कई मोर्चों पर उनकी मदद जो की है
यानी कालाढुंगी से विधायकी की फिराक में है नीरज !
ब्लाक प्रमुख बलवन्त कन्याल की हत्या के आरोपों से न्यायालय द्वारा बेदाग करार दे दिऐ गऐ नीरज तिवारी ने आगे गैर राजनीतिक संगठन बनाने तथा कालाढुंगी काण्ड की चपेट में आऐ लोगों की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है। हत्याकाण्ड के आरोपों से पूर्व बसपा के युवा जिलाध्यक्ष रहे नीरज ने घर पहुँचते ही पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर शुरू से पूरा विश्वास था, जो आज न्याय की जीत के साथ और पुख्ता हो गया है। कहा कि कालाढुंगी थाना फूंकने के आरोपों में दर्जनों लोग परेशानी झेल रहे हैं। वह गैर राजनीतिक संघटन का गठन कर सरकार पर ऐसे लोगों पर लगे मामले वापस लेने के लिए दबाव बनाएंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार नीरज कालाढूंगी से विधायकी की फिराक में है, और कोई आश्चर्य नहीं वह इसमें सफल भी हो जाए।



फिर खुलेगी कन्याल हत्याकांड की फाइलें, रिकार्ड हाईकोर्ट में तलब
नैनीताल,28 अप्रैल। बहुचर्चित बलवंत कन्याल हत्याकांड को लेकर दायर याचिका के आधार पर उच्च न्यायालय ने निचली अदालत से रिकार्ड तलब किए हैं। यह याचिका जिला एवं सत्र न्यायाधीश नैनीताल के फैसले के खिलाफ बलवंत की पत्नी दीपाली ने दाखिल की है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पीसी पंत और न्यायमूर्ति सव्रेश कुमार गुप्ता की पीठ में हो रही है। उल्लेखनीय है कि कालाढूंगी पुलिस थाने में बलवंत कन्याल की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इस हत्या के लिए बसपा नेता नीरज तिवारी को जिम्मेदार ठहराया था। पुलिस ने नीरज तिवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत होने का दावा किया था। गत 11 मार्च को जिला एवं सत्र न्यायालय नैनीताल ने मुख्य आरोपी नीरज तिवारी को बाइज्जत बरी कर दिया था। निचली अदालत के इस फैसले को कन्याल की पत्नी दीपाली ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।



कन्याल हत्याकांड में थानेदार भी दोषमुक्त
नैनीताल (एसएनबी)। ब्लाक प्रमुख संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बलवंत सिंह कन्याल की हत्या के मामले में थानेदार राम कुमार सकलानी को जिला न्यायालय ने दोषमुक्त करार दे दिया है। मुख्य आरोपित नीरज तिवारी पहले ही दोषमुक्त करार दिया जा चुका है। 22 अगस्त 2009 की रात को घटित हुए प्रदेश के इस बहुचर्चित हत्याकांड में भाजपा नेता व ब्लाक प्रमुख संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बलवंत कन्याल की कालाढूंगी थाने में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के प्रत्युत्तर में अगले दिन कालाढूंगी थाना उत्तेजित लोगों ने फूंक दिया गया था। इस मामले में थानेदार सकलानी पर आरोप था कि उसने कन्याल की हत्या की रिपोर्ट नहीं लिखी। उसने घटनास्थल थाने की बजाय अन्यत्र दिखाने का प्रयास किया व थाने में कन्याल के रक्त को धोकर साक्ष्य छिपाने का प्रयास किया। सकलानी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था। मामले में थानेदार पूर्व से ही जमानत पर चल रहा था।

Friday, March 4, 2011

विदेशी वेबसाइटें बोल रहीं युवा पीढ़ी पर अश्लीलता का हमला

पाकिस्तान में बना था भीमताल का चर्चित एमएमएस !
इंटरनेट पर अप्रेल 2010 से है मौजूद
नवीन जोशी,  नैनीताल। सीमाओं के हमले देश की सेनाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, पर देश के भीतर बाहरी दुनिया से एक ऐसा हमला हो रहा है, जिससे देश की युवा पीढ़ी के कोमल मन के साथ तन पर तो अश्लीलता का जहर घुल ही रहा है, आर्थिक रूप से भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। मोबाइल पर पाकिस्तान सहित अन्य देशों के नंबरों से फोन आने एवं विदेशों से करोड़ों रुपऐ की लॉटरी खुलने जैसी खबरों के बीच एक और हमला विदेशी अश्लील पोर्न साइटों की ओर से किया जा रहा है। इसी कड़ी में सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि गत दिनों भीमताल में स्कूली छात्रा का चर्चित एमएसएस पाकिस्तान में बना हुआ है। यह एमएमएस बीते करीब एक वर्ष से इंटरनेट पर उपलब्ध है।
उल्लेखनीय है की बीते वर्ष नवंबर-दिसंबर माह में निकटवर्ती भीमताल के एक होटल के नाम से एक स्कूली छात्रा का अश्लील एमएमएस खासा चर्चा में आया था। एमएमएस में पर्वतीय स्कूलों की छात्राओं के समान ही आसमानी रंग की कमीज व सफेद रंग का पाजामा पहने युवती को स्थानीय छात्रा समझने में अच्छे-भले जानकार भी धोखा खा गऐ थे, जबकि एमएमएस में युवती जिस तरह का पीले रंग का दुपट्टा या पट्टा डाले हुऐ है, वैसा पहाड़ की लडकियां अमूमन प्रयोग नहीं करतीं। आईजी स्तर पर मामला उठने के बाद भीमताल थाना प्रभारी उत्तम सिंह ने स्वयं मुकदमा दर्ज किया था। बाद में एक स्थानीय युवक ललित मोहन पाण्डे को यह कहकर मामले में बलि का बकरा बनाया गया कि उसकी शक्ल एमएमएस में दिख रहे युवक से मिलती है। हालांकि बाद में उसे उसके मोबाइल में ऐसे 14 अश्लील एमएमएस पाऐ जाने के आरोपों में जेल भेजा गया। बमुश्किल उसे जमानत मिल पाई है। इस मामले की जांच चण्डीगढ़ स्थित प्रयोगशाला को भेजी गई है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह 6.22 मिनट का एमएमएस lahore pakistani shy student in school uniform with her cousine (लाहौर पाकिस्तानी शाई स्टूडेण्ड इन स्कूल यूनीफार्म विद हर कजिन) नाम से 24 अप्रेल 2010 से इंटरनेट पर मौजूद है, और इसे कोई भी आसानी से देख सकता है। यह एमएमएस सामान्यता भारत में प्रयोग न की जाने वाली (भारत में विडियो डाउनलोड के लिऐ यू-ट्यूब का प्रयोग किया जाता है) फाइल्स ट्यूब वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। इस एमएमएस पर हॉट पाकिस्तानी कालेज गर्ल्स स्केण्डल्स, पाकिस्तानी स्कूल, पाकिस्तान, लाहौर स्कूल, कपल सैक्स हिडन कैमरा जैसे टैग भी लगे हुऐ हैं। जानकार एमएमएस में युवती द्वारा 'हाय अल्ला" जैसा शब्द भी बोले जाने का दावा कर रहे हैं। 
इस आधार पर ई-दुनिया के जानकार आश्वस्त हैं कि यह एमएमएस पाकिस्तान में ही बना व अपलोड हुआ है। ऐसी वेबसाइटें भारत में अश्लील वेबसाइटें प्रतिबंधित होने के बावजूद आसानी से खुल रही हैं, और चलन में हैं। शौकीनों को फाइल्स ट्यूब, एक्स वीडियोज डॉट कॉम, विज डॉट कॉम, फक ओवर माइ सेक्स सरीखी कई विदेशी वेबसाइटें भारत में खुलेआम अश्लीलता परोस रही हैं, देश की युवा पीढ़ी के तन-मन व धन को प्रदूषित व खतरे में डाल रही हैं। इन साइटों से वीडियो क्लिपिंग डाउनलोड करने पर प्रतिमाह सैकड़ों डॉलर का खर्चा वसूला जाता है। बहरहाल, इस चर्चित एमएमएस के मामले में भीमताल थानाध्यक्ष उत्तम सिंह ने स्वीकारा कि उन्हें भी एमएमएस के पाकिस्तानी होने की सूचना है। कुमाऊं आईजी राम सिंह मीणा ने कहा कि बाहरी पोर्न वेबसाइटों को रोकने के क्या प्राविधान हैं, इसका वह अध्ययन करेंगे।
हाँ, यहाँ एक और बात कहना जरूर समीचीन होगा कि मीडिया को अपने क्षेत्र से जोड़कर ऐसे विषयों पर खासकर जल्दबाजी में, बिना तथ्यों की पड़ताल किये कुछ भी प्रकाशित/प्रसारित करने से बचना चाहिए। इससे अपने क्षेत्र की बहुत बदनामी होती है। जैसे इस मामले में भीमताल क्षेत्र की हर लड़की और लड़कों को संदेह की नजर से देखा जाने लगा, जबकी एमएमएस कहीं और का बना हुआ था।
इस तरह भी हो रहा हमला
नैनीताल। इंटरनेट पर सैक्सी हल्द्वानी, सैक्सी नैनीताल, सैक्सी देहरादून, सैक्स स्केण्डल हल्द्वानी, नैनीताल, देहरादून जैसे नामों से भी वीडियो क्लिप मौजूद हैं। खास बात यह भी है बड़ी धनराशि चुकाने के बाद ही डाउनलोड होने वाली यह क्लिप्स वास्तव में एक ही होती हैं, नाम स्वत: शहर के हिसाब से बदल जाते हैं। लड़कियों से अश्लील चेटिंग, वीडियो चेटिंग आदि भी शहर के हिसाब से इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, और मोटी कीमत वसूल रहे हैं।

Sunday, January 10, 2010

क्या रिपोर्टर को फांसी पर लटका देना चाहिए ?

गत दिवस एक न्यूज़ चैनल पर आयी खबर पर रिपोर्टर व चैनेल के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी है. मैं पूछता हूँ, क्या रिपोर्टर को फांसी पर लटका देना चाहिए ?

घटना के अनुसार एक पुलिस सब इंस्पेक्टर की समय पर चिकित्सा सहायता न होने से मौत हो गयी. कल रास्ते में कुछ अपराधियों ने इस पुलिस कर्मचारी की टांग काट दी थी. वह घायल अवस्था में सड़क पर ही पड़ा रहा. कुछ ही देर में दो मंत्रियों का काफिला वहां से गुजरा, साथ में कलक्टर साहब भी थे. पर किसी ने उसे अस्पताल पहुचाने की जहमत नहीं उठाई. कलक्टर साहब ने काफी देर बाद अबुलेंस को फ़ोन किया पर जब बीस मिनट तक अबुलेंस नहीं आई तो लोग पुलिस कर्मचारी को उठा कर अपनी ही गाड़ी में ले गए पर तब तक देर हो चुकी थी और अधिक खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी. मेरा कहना है, जो काम जिसका है वही ठीक से करले तो कोइ दिक्कत नहीं है, हमेशा नेगटिव तरीके से चीजों को देखना भी ठीक नहीं. एक न्यूज़ रिपोर्टर की जिम्मेदारी क्या है ? यही नां कि समाज मैं जो हो रहा है वह सबके सामने रखे, या कि बन्दूक लेकर देश की रक्षा के लिए सीमा पर चला जाए. या खुद ही नेता बन जाए. 
मेरे हिसाब से कलम समाज को आईना दिखाने के लिए होती है, साहित्य को समाज का आईना ही कहा गया है. वह इस घटना को शूट न करता तो दोषियों को सजा की बात ही कहाँ से उठती, इससे इतना तो हुआ कि बहुत से लोग इस घटना पर सोचने को मजबूर हुए. अगर भविष्य मैं ऐसा कोई वाकया उनके सामने खुदानखास्ता हुआ तो शायद उनमें से कुछ लोग ही घायल को बचाने को उद्यत होंगे, क्या यह उस रिपोर्टर और न्यूज़ चैनल की सफलता नहीं. और क्या इस सफलता के लिए आप उसे फांसी की सजा देना चाहेंगे. वैसे भी शायद यह खबर दिखाने वाले टीवी ने साफ़ किया है कि यह खबर उनके रिपोर्टर ने शूट नहीं की, और जिसने की उसने कहा है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं थे.