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Monday, May 26, 2014

अब मोदी की बारी है......

बंबई प्रांत के मेहसाणा जिले के बड़नगर कसबे में एक बेहद साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र भाई मोदी ने आखिर देश के 15वें और पूर्ण बहुमत के साथ पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है।  उनके बारे में कहा जाता है कि वह किसी जमाने में अपने बड़े भाई के साथ चाय की दुकान चलाते थे, और अब अपने प्रांत गुजरात में जीत की हैट-ट्रिक जमाने और रिकार्ड चौथी बार कार्यभार संभालने के बाद उन्हें भाजपा की ओर से पार्टी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी पर तरजीह देकर प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया गया, और अब पूरे देश की जनता ने चुनाव पूर्व व बाद के अनेकों सर्वेक्षणों को झुठलाते हुए प्रचंड बहुमत के साथ अविश्वसनीय जीत दिला कर उन्हें स्वीकार करते हुए अपना काम कर दिया है, और अब उमींदों को पूरा करने की मोदी की बारी है। मोदी ने अपनी जीत के बाद पहले ट्वीट में 'INDIA HAS WON' कहकर और संसद को दंडवत प्रणाम कर अपना सफर शुरू करते हुए  इसकी उम्मींद भी जगा दी है। ऐसे में उनकी ताजपोशी  के साथ उनका भविष्य में देश को 'विश्व का अग्रणी देश बनाने का दावा' भी विश्वसनीय लगने लगा है।

पूर्व आलेख :
राजनीति में वही बेहतर राजनीतिज्ञ कहलाता है जो भविष्यदृष्टा होता है, यानी मौजूदा वक्त की नब्ज से ही भविष्य की इबारत लिख जाता है। भाजपा के सबसे  वरिष्ठ नेता आडवाणी के संदर्भ में बात करें तो ‘अटल युग’ में ‘मोदी’ नजर आने वाले आडवाणी देश के उप प्रधानमंत्री पद पर ही ठिठक जाने के बाद ‘अटल’ बनने की कोशिश में जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाने जा पहुंचे थे। इसका लाभ जितना हो सकता था वह यही है कि वह कथित धर्म निरपेक्ष दलों द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी से बेहतर दावेदार कहे जाने के भुलावे में थे। उनके साथ आम यथास्थितिवादी और कांग्रेस-भाजपा को एक-दूसरे की ए या बी टीम कहने वालों में यह विश्वास भी था कि देश की व्यवस्था जैसी है, थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ यथावत चलती रहेगी।

आडवाणी के इसी नफे-नुकसान के बीच से मोदी पैदा हुए। उनके आने से इस व्यवस्था से विश्वास खो चुकी जनता में नया विश्वास पैदा हुआ कि वही हैं जो मौजूदा (कांग्रेस-भाजपा की) व्यवस्था को तोड़कर और यहां तक कि भाजपा से भी बाहर निकलकर, और कहीं, राष्ट्रपिता गांधी के देश की आजादी के बाद कांग्रेस को भंग करने के साथ ही दिए गए वक्तव्य ‘इस देश को कोई उदारवादी तानाशाह ही चला सकता है’ की परिकल्पना को भी साकार करते नजर आते हैं। इसी कारण प्रधानमंत्री पद पर देशवासियों ने अन्य उम्मींदवारों अरविन्द केजरीवाल और राहुल गांधी को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी।

राष्ट्रीय राजनीति में अपना कमोबेश पहला कदम बढ़ाते हुए मोदी ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में छात्रों के समक्ष विकास की राजनीति को देश के भविष्य की राजनीति करार देते हुए अपने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का मॉडल पेश कर अपने 'मिशन 272+' की शुरुवात की। वह संभवतया पहले नेता होंगे, जो युवकों से अपनी पार्टी की विचारधारा से जुड़ने का आह्वान करने के बजाय उनसे वोट बैंक व जाति तथा धर्मगत राजनीति छोड़ने की बात कहते हैं, और साथ ही उन्हें आर्थिक गतिशीलता का विकल्प भी दिखाते हैं। मजेदार बात यह भी है कि उनका विकास का मॉडल कमोबेस देश की मौजूदा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का वही मॉडल है, जिसकी खूब आलोचना हो रही है, लेकिन वह विकास की इस दौड़ में सबको शामिल करने का संभव तरीका सुझाते हुए विश्वास जगाते हैं कि कैसे मुट्ठी भर लोगों की जगह सबको नीचे तक लाभ दिया जा सकता है। ऐसा वह हवा-हवाई भी नहीं कह रहे, इसके लिए वह अपने गुजरात और भारत देश के विकास का तुलनात्मक विवरण भी पेश करते हैं। वह स्वयं सांप्रदायिक नेता कहलाए जाने के बावजूद अपने राज्य में हर जाति-वर्ग का वोट हासिल कर ऐसा साबित कर चुके हैं। उन्होंने अपने राज्य में चलने वाली ‘खाम’ यानी क्षत्रिय, आदिवासी और मुसलमानों के गठबंधन की परंपरागत राजनीति के चक्रव्यूह को तोड़ा है। यह सब जिक्र करते हुए वह सफल प्रशासक के रूप में अपनी विकास, प्रबंधन व राजनीति की साझा समझ से प्रभावित करते हुए छात्रों-युवाओं की खूब तालियां बटोरते हैं।

क्या फर्क है गुजरात और भारत में। गुजरात में किसी का तुष्टीकरण नहीं होता, इसलिए वहां ‘सांप्रदायिक’ सरकार है। देश में एक धर्म विशेष के लोगों की लगातार उपेक्षा होती है। वहां सत्तारूढ़ पार्टी अपना हर कदम मात्र एक धर्म विशेष के लोगों के तुष्टीकरण के लिए उठाती है, बावजूद वह ‘धर्मनिरपेक्ष’ है। गुजरात में गोधरा कांड हुआ, इसलिए वहां का नेता अछूत है, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन देश के नेता की नीतियों से कृषि प्रधान देश के सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या कर ली, हजारों युवा बेरोजगारी के कारण मौत को गले लगा रहे हैं। बेटियों-बहनों से बलात्कार रुक नहीं पा रहे हैं। महंगाई दो जून की रोटी के लिए मोहताज कर रही है। भ्रष्टाचार जीने नहीं दे रहा। कैग भ्रष्टाचार के आंकड़े पेश करते थक गया है, इतनी बड़ी संख्याएं हैं कि गिनती की सीमा-नील, पद्म, शंख तक पहुंच गई हैं। और अब तो केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन भी चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर के विनिर्माण, कृषि एवं सेवा क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते एक दशक में सर्वाधिक घटकर पांच प्रतिशत पर आने का अनुमान लगा रहा है। बावजूद यह विकास की पक्षधर सरकार है, जिसके अगुवा देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री हैं। वह न होते तो पता नहीं कैसे हालात होते। शायद इसीलिए आगे हम उनके राजकुमार में ही अपना अगला प्रधानमंत्री देख रहे हैं। हमें सड़क से, गांव से निकला व्यक्ति अपना नेता नहीं लग सकता। शायद हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गई है, या कि ऐसी बना दी गई है।

विरोध से भी मजबूत होते जाने की कला 

उल्लेखनीय है की संसदीय चुनावों से पहले देश में विरोधियों के अनेक स्तरों पर यह बहस चल रही थी कि आखिर मोदी ही क्यों बेहतर हैं। लेकिन विपक्ष को वह कत्तई मंजूर नहीं थे। हर विपक्षी पार्टी उन्हें रोकने की जुगत में लगी थी, और दावा कर रही थी की वही मोदी को रोक सकती है। उनका मानना है मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं हो सकते। कतई नहीं हो सकते। क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर उनके धुर विरोधियों के पास ‘गोधरा’ के अलावा कोई दूसरा नहीं है। विपक्षी कांग्रेस सहित उनके एनडीए गठबंधन की अन्य पार्टियों के साथ ही मीडिया को भी वह खास पसंद नहीं आते। जब भी उनका नाम उनके कार्यो के साथ आगे आता है, या कि भाजपा उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताती है, तो विपक्षी दलों के साथ ही दिल्ली में बैठी मीडिया को गुजरात का ‘2002 का गोधरा’ याद आ जाता है, लेकिन कभी दिल्ली में बैठकर भी ‘1984 की दिल्ली’ याद नहीं आती, हालिया दिनों का मुजफ्फरनगर भी भुलाने की कोशिश की जाती है। दिल्ली के श्रीराम कॉलेज के गेट के बाहर भी दिल्ली के छात्र गुटों को गुजरात के दंगों के कथित आरोपी का आना गंवारा नहीं, लेकिन उन्हें दिल्ली के दंगों की याद नहीं है। फिर भी वह कहते हैं, उनका विरोध प्रायोजित नहीं है।
हालिया गुजरात विधान सभा चुनावों के दौरान विपक्षी कांग्रेस पार्टी को गुजरात में कुपोषित बच्चे व समस्याग्रस्त किसान फोटो खिंचवाने के लिए भी नहीं मिलते। लिहाजा मुंबई के कुपोषण से ग्रस्त बच्चों और राजस्थान के किसानों की फोटो मीडिया में छपवाई जाती हैं, वह विपक्षी पार्टी के प्रायोजित विज्ञापन हैं, ऐसा छापने से हमें कोई रोक नहीं सकता। पर हम जो लिखते हैं, दिखाते हैं, क्या वह भी प्रायोजित है। नहीं, तो हम एकतरफा क्यों दिखाते हैं। क्यों विपक्ष की भाषा ही बोलते हुए हमारी सुई बार-बार ‘गोधरा’ में अटक जाती है। हम गुजरात चुनाव के दौरान ही गुजरात के गांव-गांव में घूमते हैं। वहां के गांव देश के किसी बड़े शहर से भी अधिक व्यवस्थित और साफ-सुथरे हैं। हम खुद टीवी पर अपने गांवों-शहरों के भी ऐसा ही होने की कल्पना करते हैं। गुजरात में क्या हमें आज कहीं ‘गोधरा’ नजर आता है, या कि गुजरात तुष्टीकरण की राजनीति के इतर सभी गुजरातियों को एक इकाई के रूप में साथ लेकर प्रगति कर रहा है। गुजरात ने जो प्रगति की है, वह किसी दूसरे देश से आए लोगों ने आकर या किसी दूसरे देश के कानूनों, व्यवस्थाओं के जरिए नहीं की है, उन्हें एक अच्छा मार्गदर्शक नेता मिला है, जिसकी प्रेरणा से आज वह ऐसे गुजरात बने हैं, जैसा देश बन जाए तो फिर ‘विश्वगुरु’ क्या है, देश का गौरवशाली अतीत क्या है, हम निस्सदेह विकास की नई इबारत लिख सकते हैं।
तो यह डर किसका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम मोदी के जादू से डरे हुए हैं, वह एक बार सत्तासीन हो जाते हैं तो जीत की हैट-ट्रिक जमा देते हैं, लोगों के दिलों पर छा जाते हैं। कहीं दिल्ली पर भी सत्तासीन हो गए तो फिर उन्हें उतारना मुश्किल हो जाएगा। हमारी बारी ही नहीं आएगी। यह डर उस विकास का तो नहीं है, जो मोदी ने गुजरात में कर डाला है, कि यदि यही उन्होंने देश में कर दिया तो बाकी दलों की गुजरात की तरह ही दुकानें बंद हो जाएंगी। या यह डर उस ‘सांप्रदायिकता’ का है, जिससे गुजरात एक इकाई बन गया है। या उस स्वराज और सुराज का तो नहीं है, जिससे गुजरात के गांव चमन बन गए हैं। उस कर्तव्यशीलता का तो नहीं है, जिससे गुजरात के किसान रेगिस्तान में भी फसलें लहलहा रहे हैं, गुजरात के युवा फैक्टरियों में विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। गुजरात बिजली, पानी से नहा रहा है। 
या यह डर मोदी के उस साहस से है, जिसके बल पर मोदी चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद अपनी जीत के अंतर को कम करने वाले अपने धुर विरोधी हो चुके राजनीतिक गुरु केशुभाई से आशीर्वाद लेने उनके घर जाते हैं। प्रधानमंत्री पद पर नाम  घोषित किये  जाने के बाद सबसे पहले नाराजगी जताने वाले लाल कृष्ण आडवाणी के घर की ही राह पकड़ते हैं। उन्हें अपना सबसे प्रबल विरोध कर रहे आडवाणी के सार्वजनिक मंच पर पांव छूने से भी कोई हिचक नहीं है। उनके पास ‘ऐसा या वैसा होना चाहिए’ कहते हुए शब्दों की लफ्फाजी से भाषण निपटाने की मजबूरी की बजाए अपने किए कार्य बताने के लिए हैं। वह अपने किये कार्यों पर घंटों बोल सकते हैं, उनके समक्ष अपने ‘गौरवमयी इतिहास’ शब्द के पीछे अपनी वर्तमान की विफलताऐं छुपाने की मजबूरी कभी नहीं होती। वह पानी से आधा भरे और आधे खाली गिलास को आधा पानी और आधा हवा से भरे होने की दृष्टि रखते हैं, और देश की जनता और खासकर युवाओं को दिखाते हैं। ऐसी दृष्टि उन्होंने ‘सत्ता के पालने’ में झूलते हुए नहीं अपने बालों को अनुभव से पकाते हुए प्राप्त की है। बावजूद उनमें युवाओं से कहीं ओजस्वी जोश है, उन्हें देश वासियों को भविष्य के सपने दिखाने के लिए किसी दूसरी दुनिया के उदाहरणों की जरूरत नहीं पड़ती। वह पड़ोसी देश पाकिस्तान सहित पूरे विश्व को ललकारने की क्षमता रखते हैं। वह अपने घर का उदाहरण पेश करने वाले अपनी ही गुजरात की धरती के महात्मा गांधी व सरदार पटेल जैसे देश के गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं, जो केवल सपने नहीं दिखाते, उन्हें पूरा करने का हुनर भी सिखाते हैं। इसके लिए उन्हें कहीं बाहर से कोई शक्ति या जादू का डंडा लाने की जरूरत भी नहीं होती, वरन वह देश के युवाओं व आमजन में मौजूद ऐसी शक्ति को जगाने का ‘जामवंत’ सा हुनर रखते हैं, और स्वयं अपनी शक्तियों को जगाकर ‘हनुमान’ भी हो जाते हैं। उन्हें भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, नाकारापन के साथ भूख, महंगाई, बलात्कार, लूट, चोरी, डकैती जैसी अनेकों समस्याओं से घिरे देश के एक छोटे से प्रांत में इन्हीं कमजोरियों से ग्रस्त जनता, राजनेताओं और नौकरशाहों से ही काम निकालते हुऐ विकास का रास्ता निकालना आता है, जिसके बल पर वह गुजरात के रेगिस्तान में भी दुनिया के लिए फसलें लहलहा देते हैं। वह मौजूदा शक्तियों, कानूनों से ही आगे बढ़ने का माद्दा रखते हैं, और मौजूदा कानूनों से ही देश को आगे बढ़ाने का विश्वास जगाते हैं। वह नजरिया बदलने का हुनर रखते हैं, नजरिया बदलना सिखाते हैं, विकास से जुड़ी राजनीति के हिमायती हैं। एक कर्मयोगी की भांति अपने प्रदेश को आगे बढ़ा रहे हैं, और अनेक सर्वेक्षणों में देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में सर्वाधिक पसंदीदा राजनेता के रूप में उभर रहे हैं। 

लिहाजा, उनका विरोध होना स्वाभाविक ही है। सरहद के पार भी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में नाम आने पर सर्वाधिक चिंता उन्हीं के नाम पर होनी तय है, और ऐसा ही देश के भीतर भी हो सकता है। लेकिन जनता दल-यूनाइटेड सरीखे दलों को समझना होगा कि अपना कद छोटा लगने की आशंका में आप दूसरों के बड़े होते जाने को अस्वीकार नहीं कर सकते। वरन राजनीतिक तौर पर भी यही लाभप्रद होगा कि आप बड़े पेड़ के नीचे शरण ले लें, इससे उस बड़े पेड़ की सेहत को तो खास फर्क नहीं पड़ेगा, अलबत्ता आप जरूर आंधी-पानी जैसी मुसीबतों से सुरक्षित हो जाएंगे। आप जोश के साथ बहती नदी पर चाहे जितने बांध बनाकर उसे रोक लें, लेकिन उसे अपना हुनर मालूम है, वह बिजली बन जाएगा, रोके जाने के बाद भी अपना रास्ता निकालते हुए सूखी धरती को भी हरीतिमा देता आगे बढ़ता जाएगा। नरेंद्र भाई मोदी भी ऐसी ही उम्मीद जगाते हैं। उनमें पहाड़ी नदी जैसा ही जोश नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

मोदी के मंत्र:

  • तरक्की के लिए कार्यकुशलता, तेजी व व्यापक नजरिया जरूरी।
  • उत्पाद की गुणवत्ता और पैकेजिंग जरूरी। हमें उत्पादन बड़ाना है और ‘मेड इन इंडिया’ टैग को हमें क्वालिटी का पर्याय बनाना है।
  • युवा जाति-धर्मगत व वोट बैंक की राजनीति से बाहर निकलें। तरक्की का रास्ता पकड़ें। 
  • 21वीं सदी भारत की। भारत अब सपेरों का नहीं ‘माउस’ से दुनिया जीतने वाले युवाओं का देश है। 
  • विकास से ही देश में आएगा विराट परिवर्तन, विकास ही है सभी समस्याओं का समाधान।
  • 60 साल पहले स्वराज पाया था, अब सुराज (गुड गर्वनेंस) की जरूरत।
  • आशावादी बनें, न कहें आधा गिलास भरा व आधा खाली है, कहें आधा गिलास पानी और आधा हवा से भरा है।

मोदी का गुजरात मॉडलः

  • गुजरात ने पशुओं की 120 बीमारियां खत्म की, जिससे दूध उत्पादन 80 फीसदी बढ़ा। गुजरात का दूध दिल्ली से लेकर सिंगापुर तक जाता है। 
  • गुजरात में एक माह का कृषि महोत्सव होता है। यहां की भिंडी यूरोप और टमाटर अफगानिस्तान के बाजार में भी छाये रहते हैं। 
  • गुजरात में 24 घंटे बिजली आती है। नैनो देश भर में घूमकर गुजरात पहुंच गई। गुजरात में बने कोच ही दिल्ली की मैट्रो में जुड़े हैं। 
  • गुजराती सबसे बढ़िया पर्यटक हैं। वह पांच सितारा होटलों से लेकर हर जगह मिलते है।
  • गुजरात दुनिया का पहला राज्य है जहां फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी है। फोरेंसिक साइंस आज अपराध नियंत्रण की पहली जरूरत है। 
  • गुजरात में देश की पहली सशस्त्र बलों की यूनिवर्सिटी है। गुजरात के पास तकनीक की जानकार सबसे युवा पुलिस-शक्ति है।
  • पूरा देश गुजरात में बना नमक इस्तेमाल करता है।

भारत के 15वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के नागरिकों के लिए अपनी आधिकारिक वेबसाइट http://www.pmindia.nic.in/ पर सबसे पहला संदेश...

भारत और पूरे विश्व के प्रिय नागरिको, नमस्ते

भारत के प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट पर आपका स्वागत है।

16 मई 2014 को भारत के लोगों ने जनादेश दिया। उन्होंने विकास, अच्छे प्रशासन और स्थिरता के लिए जनादेश दिया। अब, जबकि हम भारत की विकास यात्रा को एक नई ऊंचाई पर ले जाने में जुट जाने वाले हैं, हम आपका साथ, आशीर्वाद और सक्रिय भागीदारी चाहते हैं। हम सब मिलकर भारत के शानदार भविष्य की रूपरेखा लिखेंगे। आइए, मिलकर एक मजबूत, विकसित, सभी को सम्मिलित भारत का सपना देखें। एक ऐसे भारत का सपना, जो पूरी दुनिया के शांति और विकास के सपने में सक्रिय भागीदारी निभाएगा।
मैं इस वेबसाइट को भारत हमारे बीच संवाद एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में देखता हूं। पूरी दुनिया के लोगों से संवाद के लिए तकनीक और सोशल मीडिया की ताकत में में मेरा दृढ़ विश्वास है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह माध्यम सुनने, सीखने और एक-दूसरे के विचार बांटने के मौके पैदा करेगा।

इस वेबसाइट के जरिए आपको मेरे भाषणों, कार्यक्रमों, विदेश यात्राओं और बहुत सी अन्य बातों की ताजा जानकारी मिलती रहेगी। मैं आपको यह भी बताता रहूंगा कि भारत सरकार किस तरह की पहलें कर रही है।

आपका
नरेंद्र मोदी

Friday, March 7, 2014

यह युग परिवर्तन की भविष्यवाणी के सच होने का समय तो नहीं ?



(मूलतः 2011 में लिखी गई पोस्ट) 

बात कुछ पुराने संदर्भों से शुरू करते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि १८३६ में उनके गुरु आचार्य रामकृष्ण परमहंस के जन्म के साथ ही युग परिवर्तन काल प्रारंभ हो गया है। यह वह दौर था जब देश ७०० वर्षों की मुगलों की गुलामी के बाद अंग्रेजों के अधीन था, और पहले स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल भी नहीं बजा था।
बाद में महर्षि अरविन्द ने प्रतिपादित किया कि युग परिवर्तन का काल, संधि काल कहलाता है और यह करीब १७५ वर्ष का होता है...
पुनः, स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘वह अपने दिव्य चक्षुओं से देख रहे हैं कि या तो संधि काल में भारत को मरना होगा, अन्यथा वह अपने पुराने गौरव् को प्राप्त करेगा.... ’
उन्होंने साफ किया था ‘भारत के मरने का अर्थ होगा, सम्पूर्ण दुनिया से आध्यात्मिकता का सर्वनाश ! लेकिन यह ईश्वर को भी मंजूर नहीं होगा... ऐसे में एक ही संभावना बचती है कि देश अपने पुराने गौरव को प्राप्त करेगा....और यह अवश्यम्भावी है।’
वह आगे बोले थे ‘देश का पुराना गौरव विज्ञान, राज्य सत्ता अथवा धन बल से नहीं वरन आध्यात्मिक सत्ता के बल पर लौटेगा....’
अब १८३६ में युग परिवर्तन के संधि काल की अवधि १७५ वर्ष को जोड़िए. उत्तर आता है २०११. यानी हम 2011 में युग परिवर्तन की दहलीज पर खड़े थे, और इसी दौर से देश में परिवर्तनों के कई सुर मुखर होने लगे थे....
अब आज के दौर में देश में आध्यात्मिकता की बात करें, और बीते कुछ समय से बन रहे हालातों के अतिरेक तक जाकर देखें तो क्या कोई व्यक्ति इस दिशा में आध्यात्मिकता की ध्वजा को आगे बढाते हुआ दिखते हैं, क्या वह बाबा रामदेव या अन्ना हजारे हो सकते हैं.....?
कोई आश्चर्य नहीं, ईश्वर बाबा अथवा अन्ना को युग परिवर्तन का माध्यम बना रहे हों, और युगदृष्टा महर्षि अरविन्द और स्वामी विवेकानंद की बात सही साबित होने जा रही हो....
यह भी जान लें कि आचार्य श्री राम शर्मा सहित फ्रांस के विश्वप्रसिद्ध भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस सहित कई अन्य विद्वानों ने भी इस दौर में ही युग परिवर्तन होने की भविष्यवाणी की हुई है। उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि "दुनिया में तीसरे महायुद्ध की स्थिति सन् 2012 से 2025 के मध्य उत्पन्न हो सकती है। तृतीय विश्वयुद्ध में भारत शांति स्थापक की भूमिका निबाहेगा। सभी देश उसकी सहायता की आतुरता से प्रतीक्षा करेंगे। नास्त्रेदमस ने तीसरे विश्वयुद्ध की जो भविष्यवाणी की है उसी के साथ उसने ऐसे समय एक ऐसे महान राजनेता के जन्म की भविष्यवाणी भी की है, जो दुनिया का मुखिया होगा और विश्व में शांति लाएगा।"
अब 2014 में, जबकि लोक सभा चुनावों की दुंदुभि बज चुकी है। ऐसे में क्या यह मौका युग परिवर्तन की भविष्यवाणी के सच साबित होने का तो नहीं है। देश का बदला मिजाज भी इसका इशारा करता है, पर क्या यह सच होकर रहेगा ? कौन होगा युग परिवर्तक ? क्या मोदी ?

एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र की कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार अब तक चीनी, आईपीएल, राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श सोसाइटी, २-जी स्पेक्ट्रम आदि सहित २,५०,००० करोड़ मतलब २,५०,००, ००,००,००,००० रुपये का घोटाला कर चुकी है. मतलब दो नील ५० खरब रुपये का घोटाला, 

यह अलग बात है कि हमारे (कभी विश्व गुरु रहे हिंदुस्तान के) प्रधानमंत्री मनमोहन जी और देश की सत्ता के ध्रुव सोनिया जी को यह नील..खरब जैसे हिन्दी के शब्द समझ में ही नहीं आते हैं.... 
अतिरेक नहीं कि एक विदेशी है और दूसरा विश्व बैंक का पुराना कारिन्दा.... यानी दोनों ही देश की आत्मा से बहुत दूर …
शायद वह अपनी करनी से देश में क्रांति को रास्ता दे रहे है….
संभव है बाबा रामदेव जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं, और अन्ना हजारे जो जन लोकपाल के मुद्दे पर आन्दोलन का बिगुल बजाये हुए हैं, इस क्रांति के अग्रदूत हों. बाबा रामदेव के आरोप अब सही लगने लगे हैं की गरीब देश कहे जाने वाले (?) हिन्दुस्तानियों के ( जिनमें निस्संदेह नेताओं का हिस्सा ही अधिक है) १०० लाख करोड़ (यानी १०,००,००,००,००,००,००,०००) यानी १० पद्म रुपये (बाबा रामदेव के अनुसार) और एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार ७० लाख करोड़ यानी सात पद्म रुपये भारत से बाहर स्विस और दुनिया ने देश के अन्य देशों के अन्य बैंको में छुपाये है. इस अकूत धन सम्पदा को यदि वापस लाकर देश की एक अरब  से अधिक जनसँख्या में यूँही बाँट दिया जाए तो हर बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब को ७० लाख से एक करोड़ रुपये तक बंट सकते हैं....  
जान लीजिये की देश की केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों और सभी निकायों का वर्ष का कुल बजट इस मुकाबले कहीं कम केवल २० लाख करोड़ यानी दो पद्म रुपये यानी विदेशों में जमा धन का पांचवा हिस्सा  है. यानी इस धनराशी से देश का पांच वर्ष का बजट चल सकता है..
लेकिन अपने सत्तासीन नेताओं से यह उम्मीद करनी ही बेमानी है की देश की इस अकूत संपत्ति को वापस लाने के लिए वह इस ओर पहल भी करेंगे…
मालूम हो की संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा धन वापस लाने के लिए भारत सहित १४० देशों के बीच एक संधि की है. इस संधि पर १२६ देश पुनः सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, लेकिन भारत इस पर हस्ताक्षर नहीं कर रहा है. 

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Monday, August 1, 2011

नैनीताल हाईकोर्ट ने सीबीआई की यूं की बोलती बंद


स्वामी रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण द्वारा गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल उच्च न्यायालय ने 'टॉर्चर' के जरिये लोगों की बंद जुबान खोलने में माहिर सीबीआई की बोलती बंद कर दी। न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए बालकृष्ण की गिरफ्तारी पर तो रोक लगाई ही, यह भी बेपर्दा कर दिया कि सीबीआई किसके हाथों की कठपुतली है। 
मालूम हो कि बीती २९ जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल की एकल खंडपीठ ने बालकृष्ण को 3 अगस्त को सीबीआई के सम्मुख अपना पक्ष रखने और 5 अगस्त तक अपना पासपोर्ट हाईकोर्ट के रजिस्टार जनरल के यहां जमा करने के भी आदेश दिए हैं साथ ही एक सप्ताह के भीतर अपने साक्ष्य पेश करने को भी कहा है, साथ ही सीबीआई को भी तीन सप्ताह के भीतर काउंटर पेश करने के आदेश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई अब 29 अगस्त को होगी। उच्च न्यायालय में क्या हुआ, इसका लब्बो-लुआब कुछ इस तरह रहा


न्यायमूर्ति ने सीबीआई से पूछा: बालकृष्ण कहाँ रहते हैं ?
सीबीआई : हरिद्वार, उत्तराखंड. 
न्यायालय: उत्तराखंड में कोई सरकार या पुलिस है या नहीं ?
सीबीआई: है....
न्यायालय: तो आप कहाँ से टपक पड़े....यहाँ की सरकार से शिकायत क्यों नहीं की ?  संवैधानिक मर्यादाओं/बाध्यताओं का पालन करते हुए सहयोग क्यों नहीं लिया गया .....(हजार बार मांग करने, धरना-प्रदर्शन करने पर भी सीबीआई की जांच नहीं होती है...)
सीबीआई: चुप.... 
न्यायालय: पासपोर्ट एक्ट के Section-10 के तहत केंद्र से कानूनी कार्रवाई की अनुमति क्यों नहीं ली...
सीबीआई: चुप...
सीबीआई: बालकृष्ण नेपाली नागरिक है...
न्यायालय: तो क्या इनका दादूबाग हरिद्वार में जन्म का सर्टिफिकेट फर्जी है ? है तो Registration of Birth Certificate Act के तहत कार्रवाई क्यों नहीं की ?
सीबीआई: लेकिन बालकृष्ण विदेशी नागरिक है, इसलिए उसे भारत का पासपोर्ट नहीं दिया जा सकता...
न्यायालय: लेकिन इसी उत्तराखंड उच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश केन्या के निवासी थे, उनके पास भी तो भारत का पासपोर्ट है....
सीबीआई: चुप....
न्यायालय: इनका वोटर लिस्ट में भी नाम है, गैस कनेक्शन है, उसकी शिकायत क्यों नहीं की ?
न्यायालय: पासपोर्ट १९९७ में बना और २००७ में रिन्यू हुआ, क्या तब जन्म प्रमाण पत्र  की जांच नहीं हुयी ?
सीबीआई: चुप...
न्यायालय: इनके नेपाली नागरिक होने का कोई दस्तावेज है ?
सीबीआई: पहले चुप...फिर...नेपाली मूल का होने का दस्तावेज नहीं हैं लेकिन एफआईआर में आरोप लगाए गए हैं।
न्यायालय: तो क्या, आरोपों/ कयासों पर किसी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे...आप तो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी हैं, बिना जांच के कार्रवाई करेंगे ? ... जाइए, तीन सप्ताह में दस्तावेज लाइए...

(यहां उल्लेखनीय है कि आचार्य प्रमोद कृष्णम् नाम के एक अनाम व्यक्ति ने सीधे राष्ट्रपति को भेजे शिकायती पत्र में बालकृष्ण के आयु व शिक्षा प्रमाण पत्रों को फर्जी बताते हुए जांच की मांग की थी। राष्ट्रपति भवन से मामले को प्रधानमंत्री कार्यालय को संदर्भित किया गया। प्रधानमंत्री ने तुरंत मामला केन्द्रीय गोपन विभाग को भेजा और गोपन विभाग ने बिना कोई देरी किये व राज्य सरकार से परामर्श किये बिना मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की सिफारिस कर दी। सीबीआई ने प्राथमिक जांच के आधार पर ही बालकृष्ण के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र की धारा १२०बी ,धोखाधड़ी की 420 व फर्जी कागजातों के लिए I .P.C . की संबंधित दर्जन भर धाराओं में मामला दर्ज कर दिया। फर्जी पासपोर्ट को लेकर भी एफआईआर दर्ज की गई। ) 
सीबीआई बालकृष्ण को पूछताछ करने के लिए बुलाकर गिरफ्तार करने की कोशिश में थी, जिसके खिलाफ बालकृष्ण द्वारा उच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा था कि मामला राजनीति से प्रेरित है, बाबा रामदेव  के सहयोगी होने के चलते  सीबीआई उन्हें झूठे मुकदमें में गिरफ्तार करना चाहती है।
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1.कांग्रेस के नाम खुला पत्र: कांग्रेसी आन्दोलन क्या जानें....
2. यह युग परिवर्तन की भविष्यवाणी के सच होने का समय तो नहीं ?
3. अमेरिका, विश्व बैंक, प्रधानमंत्री जी और ग्रेडिंग प्रणाली
4. जनकवि 'गिर्दा' की दो एक्सक्लूसिव कवितायें
5. कौन हैं अन्ना हजारे ? क्या है जन लोकपाल विधेयक ?
6. नीरो सरकार जाये, जनता जनार्दन आती है

Monday, June 6, 2011

कांग्रेस के नाम खुला पत्र: कांग्रेसी आन्दोलन क्या जानें....

देश की आजादी के बाद अधिकतम समय सत्ता में  रहने वाले कांग्रेस पार्टी के लोग आन्दोलन क्या जानें, उन्होंने  तो हमेशा आन्दोलन को कुचलना सीखा है, उन्हें कभी आन्दोलन करना पड़े तो तब देखिये इनकी हालत, अभी भट्टा-परसौल के मामले में राहुल गाँधी और मुंह में कोई (?) बुरी चीज लेकर बोलने वाले उनके बडबोले चापलूस महासचिव दिग्विजय सिंह की नौटंकी को जनता अभी भूली नहीं है. 

कांग्रेसी तो गांधी जी के सत्याग्रह को भी भूल गए हैं, कोई इनसे पूछे कि क्या राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी कभी निर्धारित संख्या  की इजाजत लेकर किसी स्थान पर सत्याग्रह  करते थे....क्या उन्हें कभी अंग्रेजों ने इसी तरह एक रात भी आन्दोलन पर नहीं टिकने देने के लिए इस प्रकार का दुष्चक्र (वह भी आधी रात्रि  को) रचा....(या कि तब अंग्रेजों के राज में रात्रि ही नहीं होती थी, और अब आपके राज में दिन ही नहीं होता ?) ?????


हमें याद है, आपने ऐसा ही कुछ 2 अक्टूबर 1994 को (मुजफ्फरनगर-मुरादाबाद से अपमानित और बचकर) दिल्ली में लालकिले के पीछे वाले मैदान में पहुंचे उत्तराखंडियों के साथ भी यही किया था, जहाँ आप के ही एक व्यक्ति (उसकी व उसके आका की पहचान सबको पता है) ने पहले भीड़ की और से एक पत्थर उछाला और फिर दिल्ली पुलिस ने लाठियां भांज कर भीड़ को तितर-बितर कर दिया...
और 23 -24 सितम्बर 2006 को नैनीताल में आयोजित कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन के पहले (इस सम्मलेन में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी शामिल हुई थीं) कई दिनों से आमरण अनशन पर बैठे राज्य आंदोलकारियों को आधी रात को इसी तरह मल्लीताल पन्त पार्क से उठवा दिया था...तत्कालीन कुमाऊँ आयुक्त ने आन्दोलनकारियों को लिखित आश्वाशन दिए थे, जिन पर आज तक अमल नहीं हुआ है.....


.....लेकिन इसके उलट बीते मई माह में ही आपकी पार्टी ने अध्यक्ष के नेतृत्व में यहाँ उत्तराखंड में "सत्याग्रह" आन्दोलन किया था, और उसके 'फ्लॉप' होने का दोष आपकी ही पार्टी के सांसद प्रदीप  टम्टा और विधायक रणजीत रावत ने 'नाच न जाने आँगन टेड़ा' की तर्ज पर जनता के शिर यह कह कर फोड़ने की कोशिश की थी की इन दिनों खेती और शादी-ब्याह जैसे काम-काज होने के कारण भीड़ नहीं जुटी. सत्याग्रह का समय तय करने में रणनीतिक चूक हुई,  इसके बाद दिल्ली में रामदेव पर बरसने वाले टम्टा को इस बात का जवाब भी देना चाहिए की उनका बरसना इस कारण तो नहीं था कि  इन्हीं दिनों रामदेव ने इतनी भीड़ कैसे जुटा ली....

आपने तो अब उसी लोकतंत्र को भीड़तंत्र कहना शुरू कर दिया है, जिसके बल पर आप यहाँ हैं........ शायद आपकी और इनकी (अन्ना व रामदेव की) भीड़ में यह फर्क हो गया है कि आप की भीड़ नोट लेकर इकठ्ठा होती और वोट देती है, और उनकी स्वतः स्फूर्त आती है.
लोकतंत्र का अर्थ गांधी परिवार की सत्ता का राजशाही की तरह अनवरत चलते जाना नहीं है, वरन लोकतंत्र में कोइ भी सत्तानशीं हो सकता है, एक साधु भी....सुदामा भी, तो अन्ना या रामदेव क्यूँ नहीं ?? चाणक्य के इस देश और "यदा-यदा ही धर्मस्यः, ग्लानिर भवति भारतः.... " का सन्देश देने वाली गीता की कसम खाने वाले भारतवासियों में यह विश्वास भी पक्का है की जब हद हो जायेगी, युग परिवर्तन होगा और लगता हैं कि युग परिवर्तन की दुन्दुभी बज चुकी है. क्या नहीं ????


शायद नहीं....शायद हमें देश का धन लूटकर विदेशों में जमा करने वाले लुटेरों-डकैतों की आदत पड़ गयी है, इसलिए साधु-संतों को हमारे यहाँ राजनीति करने का अधिकार नहीं... शायद वो जमाने बीत गये जब देश को चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ चलाते थे.....

सच कहें तो कांग्रेस को विरोध गंवारा ही नहीं है.....आप उनके (कांग्रेस के) खिलाफ आन्दोलन नहीं कर सकते, खुद को नुक्सान पहुंचाते हुए राष्ट्रपिता की राह पर चलकर "सत्याग्रह" नहीं कर सकते....जूता उछाल या दिखा नहीं सकते...कांग्रेस, आप खुद ही बता दें, कोई आपका विरोध करे तो  कैसे  करे ?....

या कि जो भी आपका विरोध करेगा उसे आप कुचल देंगे, चाहे वह अन्ना  हो या  रामदेव, या फिर कोई भी और...

कोई आपको छुए भी तो आप फट  पड़ेंगे, और कोई फट पड़े तो आप उसका मजाक और मखौल उड़ायेंगे...
खैर आप कुछ भी अलग नहीं कर रहे हैं, उन सत्ता के मद में चूर लोगों से, जो हिटलरशाही की राह पर होते हैं....

कितनी अजीब बात है कि बीती छह  जून 2011 को अंग्रेजों के देश (उन्हीं अंग्रेजों, जिन्हें भारतीयों ने सत्याग्रह के जरिये ही देश से भगाया था)  इंग्लैंड में बाबा रामदेव के समर्थन  में (सही मायने में आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ) हजारों लोगों ने जुलूस निकाला और उन्हें किसी ने नहीं रोका, और यहाँ आप (काले अंग्रेजों) ने  देश में चार जून की (काले शनिवार की) रात क्या किया ....

उलटे आपने अच्छा मौका ढूढ़ लिया, जो भी आपका विरोध करे, उसे आप फासिस्ट...आरएसएस का मुखौटा कह दें... रामदेव को तो कह दें, चल जाएगा..अन्ना को भी ???

यानी समाजवादियों...बसपाइयों...राजद..तेलगू देशम, माकपा, भाकपा...... जो भी रामदेव का समर्थन कर रहा है वह आरएसएस का मुखौटा हो गया..... यानी आप कह रहे हैं कि आपका विरोध कर रहा पूरा देश आरएसएस का मुखौटा हो गया है.... ऐसे में कहीं आप यह तो नहीं कह रहे हैं कि पूरा  देश आरएसएस के रंग में रंगता जा रहा है.......


लेकिन शायद ऐसा नहीं है...सच यह है कि आज देश (यहाँ तक की आपस में धुर विरोधी दक्षिण और बाम पंथ भी एक साथ आकर) आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हो रहा है... इस बात को जल्दी समझ जाइए...वरना बहुत देर हो जायेगी....

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Friday, April 8, 2011

कौन हैं अन्ना हजारे ? क्या है जन लोकपाल विधेयक ?

देश में आजादी के बाद से ही लगातार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते जा रहे भ्रष्टाचार के हद से अधिक गुजर जाने के बाद युगपरिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है ऐसे में बाबा रामदेव के बाद किसी धूमकेतु की तरह अचानक किशन बाबूराव हज़ारे  (अन्ना हजारे) परिदृश्य में अवतरित हुए हैदिल्ली में पहले चार अप्रेल से जंतर-मंतर पर पांच दिन और अब १६ अगस्त से रामलीला मैदान में "जन लोकपाल विधेयक" की मांग पर अनशन पर बैठे अन्ना की पहल पर ही पूर्व में देश में आज के दौर का सर्वाधिक चर्चित "सूचना का अधिकार-2005" आया था . आइये अन्ना और उनके द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक के बारे में कुछ और जानते हैं। 
अन्ना का जन्म 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रालेगाँव सिद्धी नाम के गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ था। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण अन्ना पढ़ नहीं पाए। 1963 में भारत-चीन युद्ध के दौरान वह भारतीय सेना में एक ड्राइवर के रूप में शामिल हुए। कहते हैं की 1965 में खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारतीय सैनिकों के शहीद होते देख वे बड़े व्यथित हुए, इसी दौरान उन्होंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी व आचार्य विनोबा भावे के बारे में अध्ययन किया और बेहद प्रभावित हुए।  1975 में वह सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपने गाँव लौट आये और वहां ग्रामीणों को नहर और बाँध बनाकर पानी का संग्रह करने की प्रेरणा दी उन्होंने साक्षरता कार्यक्रम भी चलाये, जिनसे वह देश भर में मशहूर हुए। उन्होंने पहला आन्दोलन महाराष्ट्र के वन विभाग के खिलाफ किया व सफल रहे। पूर्व में वह 10 बार आमरण अनशन कर चुके हैं। आगे 1991 में उन्होंने "भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन" का गठन किया, 97 में सूचना का अधिकार माँगते हुए आन्दोलन चलाया, जिस पर पहले महाराष्ट्र और फिर 2005 में केंद्र सरकार को "सूचना का अधिकार" लाना पढ़ा। 

- इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
- यह संस्था चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायलय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी।
- किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
- भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
- भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
- अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
- लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
- लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
- सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटी- करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
- लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।
-यह बिल जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया है।
लोकपाल का विस्तृत ड्राफ्ट देखने को यहाँ क्लिक करें.
यहाँ  क्लिक करके भी देख सकते हैं. 

संसद में कई बार पेश हो चुका है लोकपाल बिल

पूर्व में लोकपाल बिल कई बार संसद में पेश किया जा चका है, लेकिन कभी पास नहीं हो सका। 2004 में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि जल्द ही लोकपाल बिल संसद में पेश किया जाएगा, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा और आखिरकार अन्ना हजारे को आमरण अनशन पर बैठना पड़ा।
भारत सरकार ने भ्रष्टाचार से निपटने और इस पर कड़ी निगरानी रखने के लिए 1969 में लोकपाल विधेयक नाम से एक बिल पारित किया। यह बिल लोकसभा में तो पारित हो गया लेकिन राज्यसभा में पास नहीं हो पाया। लोकपाल बिल 1971, 1977, 1985 1989, 1996,1998, 2001 और 2005 में राज्य सभा में रखा गया लेकिन पास नहीं हो सका। पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के कार्यकाल में एक बार 1996 और अटल बिहारी वाजपेयी के समय दो बार 1998 और 2001 में इसे लोकसभा में लाया गया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
क्या सभी समस्याओं का हल साबित होगा लोकपाल बिल ? 
अन्ना हजारे की नजर में भ्रष्टाचार एक कानूनी समस्या है। वे इसके लिए मनमाफिक जन लोकपाल बिल चाहते हैं। अब जबकि सरकार ने अन्ना की जन लोकपाल विधेयक की मांग मान ली है, इसके बावजूद सवाल उठता है की क्या संसद इसी रूप में इस विधेयक को पारित कर देगी, जबकी उसी के सदस्यों और इसका ड्राफ्ट बनाने वाले नौकरशाहों पर ही इसकी चोट पड़ने वाली है ?  यदि विधेयक बन ही गया, तो क्या इससे भ्रष्टाचार समाप्त अथवा कम हो पाएगा ? क्या लोकपाल को कानूनी शक्तियाँ दे दी जाएंगी तो भ्रष्टाचार रूक जाएगा ? क्या भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जन लोकपाल बिल काफी है ? हमारे यहाँ तो कितना भी अच्छा पटाखा आये, जल्द फुस्स हो जाता है. बड़े-बड़े चमकीले तारे भी जल्द ही टिमटिमा कर बुझ जाते हैं.  किसी भी कानून के आने के साथ ही उसमे छेद बना लिए जाते हैं, ऐसे में हजारे और जन लोकपाल विधेयक के सामने इन सबसे अलग होने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। याद रखना होगा की अन्ना के आन्दोलन को मिला जनता का अभूतपूर्व समर्थन "जन लोकपाल बिल " से अधिक केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार की अटूट श्रंखला, और हर स्तर पर उसे (जनता को) झेलने पढ़ रहे इसके दंश की प्रतिक्रिया था। बिल से भ्रष्टाचार ख़तम होगा या नहीं, यह तो तय नहीं, पर इतना भरोसे से कहा जा सकता है के अन्ना के आन्दोलन को समर्थन देने वाले लोग ही यदि स्वयं को भ्रष्टाचार से अलग कर लें तो देश का काफी भला जरूर हो जाएगा


"भ्रष्‍टाचार का महारोग देश की सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। राजधानी से गांव तक और संसद से पंचायत तक सभी क्षेत्रों में भ्रष्‍टाचार ने अपनी जड़ें मजबूत कर ली है। आम आदमी परेशान है। हमारे समक्ष नैतिक बल से संपन्‍न ऐसे आदर्श की कमी है जो भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध जन-जागरण कर सकें, ऐसे में 72 साल के वयोवृद्ध समाजसेवी अन्‍ना हजारे ने इस मुद्दे पर सरकार को ललकारा है। लोकपाल बिल 2010 अभी संसद के पास विचाराधीन है। इस बिल में प्रधानमंत्री और दूसरे मंत्रियों के खिलाफ शिकायत करने का प्रावधान है। श्री हजारे के अनुसार बिल का वर्तमान ड्राफ्ट प्रभावहीन है और उन्होंने एक वैकल्पिक ड्राफ्ट सुझाया है। आइए, हम भी आर्थिक शुचिता के पक्षधर बनें, इस मसले पर जनजागरण करें और भ्रष्‍टाचारमुक्‍त समाज व शासन सुनिश्चित करने का संकल्‍प लें।"
यदि आप भी अन्ना की मुहिम में जुड़ना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. 




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