You'll Also Like

Showing posts with label Ghorakhal. Show all posts
Showing posts with label Ghorakhal. Show all posts

Friday, February 26, 2010

घोडाखाल: यहां अर्जियां पढ़कर ग्वल देवता करते हैं न्याय

ग्वल देव के दरबार में न्यायालयों से थके हारे लोग लगाते हैं न्याय की गुहार
ग्वेल, ग्वल, गोलज्यू कुछ भी कह लीजिऐ, यह कुमाऊं के सर्वमान्य न्याय देवता के नाम हैं, जो आज भी न्यायालयों में पूरी उम्र न्याय की आश में ऐड़िया रगड़ने को मजबूर लोगों को चुटकियों में न्याय दिलाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इस हेतु उनके दरबार में न्याय की आस में लोग बकायदा सादे कागजों के साथ ही स्टांप पेपरों पर भी अर्जियां लगाते हैं। यह भी मान्यता है कि यहां अर्जियां लगाने से श्रद्धालुओं को नौकरी, विवाह, संपत्ति आदि की रुकावटें भी दूर होती हैं।
ग्वल देव कुमाऊं के राजकुमार थे। उनका राजमहल आज भी चंपावत में बताया जाता है। अपने जन्म से ही सौतेली माताओं के षडयन्त्र के कारण कई विषम परिस्थितियों में घिरे राजकुमार अपने न्याय कौशल से ही राजभवन लौट पाऐ थे। इसी कारण उन्हें न्याय देव के रूप में कुमाऊं के जन जन द्वारा ईष्ट देव के रूप में अटूट आस्था के साथ पूजा जाता है। चंपावत, द्वाराहाट, चितई व नैनीताल के निकट घोड़ाखाल नामक स्थान पर उनके मन्दिर स्थित हैं, जहां प्रवासी कुमाउंनियों के साथ ही अन्य प्रदेशों के लोग भी लगातार आते रहते हैं, और खास पर्वों पर मन्दिरों में भक्तों का मेला लगता है। उनके मन्दिरों को कमोबेश देश, राज्य में चल रही राजस्व व्यवस्था की तरह ही न्यायिक अधिकार बताऐ जाते हैं। श्रद्धालुओं को इसका लाभ भी मिलता है। घोड़ाखाल एवं चितई आदि मन्दिरों में बंधी असंख्य घंटियां बताती हैं कि कितने लोगों को यहां से न्याय मिला और मनमांगी मुराद पूरी हुई।
युगलों के विवाह का पंजीकरण भी होता है यहां 

जिस प्रकार युगल वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए परगना मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विवाह पंजीकृत कराते हैं, उसी तर्ज पर ग्वल देव के मन्दिरों में भी विवाह का पंजीकरण किया जाता है। इस हेतु बकायदा स्टांप पेपर पर वर एवं वधु पक्ष के गिने चुने और कभी कभार प्रेमी युगल भी मन्दिर पहुंचते हैं, और स्टांप पेपर पर विवाह बंधन में बंधने का शपथ पत्र देते हैं। जिसके बाद ही यहां सादे विवाह आयोजन की इजाजत होती है।
लेकिन घंटों का गला पकड़ लिया गया...





मन्दिरों के घंटे घड़ियालों की मधुर ध्वनि किसे अच्छी नहीं लगती। इसे पर्यावरण के शुद्धीकरण में भी उपयोगी माना जाता है। लेकिन लगता है कि घोड़ाखाल मन्दिर प्रबंधन इसका अपवाद है। मनमांगी मुरादें पूरी होने पर श्रद्धालु ग्वल देव के मन्दिरों में घंटियां चढ़ाते हैं। छोटी घंटियों की असंख्य संख्या को देखते हुऐ पूर्व में घोड़ाखाल मन्दिर प्रबंधन ने छोटी घंटियों को गलाकर बड़ी घंटियों में बदल दिया था। मन्दिर में सवा टन भारी घंटियां तक मौजूद हैं। लेकिन इधर मन्दिर प्रबंधन लगता है घंटियों की मधुर ध्वनि से परेशान है। शायद इसी लिए घंटियों को इस तरह बांध दिया गया है कि श्रद्धालु चाहकर भी इसे नहीं बजा पाते। मन्दिर के पुजारी भी नि:संकोच स्वीकार करते हैं कि घंटियों की अधिक ध्वनि के कारण उन्हें बांध दिया गया है।