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Sunday, August 7, 2011

नैनीताल में किंग कोबरा के बाद दिखी सतरंगी इंडियन पिट्टा


दक्षिण भारत के पश्चिमी तट के घने जंगलों में रहती है इंडियन पिट्टा फुदक कर पूरी करती है डेढ़ हजार किमी लंबी यात्रा
नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल जनपद में बहुचर्चित किंग कोबरा सांप के बाद अब सतरंगी ‘इंडियन पिट्टा’ चिड़िया भी दिखाई दी है। पारिस्थितिकी विशेषज्ञ इसे जनपद की श्रेष्ठ जैव विविधता व पुष्ट पारिस्थितिकी तंत्र का परिचायक मान रहे हैं। इंडियन पिट्टा के यहां पाये जाने का अर्थ है कि जनपद में दक्षिण भारत के पश्चिमी तट जैसे घने वन मौजूद हैं। 

इंडियन पिट्टा नाम का यह नन्हा पक्षी किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकी बताने के मामले में बड़ी भूमिका निभाता है। सामान्यतया दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट के बेहद घने वनों में पाया जाने वाला यह छोटा सा पक्षी अपनी सुंदरता के लिए पक्षी प्रेमियों को खासा आकषिर्त करता है। देश की सबसे रंगीन चिड़ियों में से एक इंडियन पिट्टा में लाल, हरा, नीला, पीला, काला, सफेद जैसे मूल रंगों के साथ अन्य कई रंग भी होते हैं। इसकी खासियत है कि यह सामान्यतया अधिक न उड़ने वाला पक्षी होने व फुदक कर ही इधर से उधर जाने के बावजूद करीब डेड़ हजार किमी की यात्रा कर जनपद में प्रवास पर पहुंचता है। पक्षी प्रेमी व विशेषज्ञ प्रभागीय वनाधिकारी अमित वर्मा ने इसे जनपद में चोरगलिया से आगे नंधौर नदी की ओर मछली वन में देखा और कैमरे में कैद करने में सफलता प्राप्त की। वर्मा बताते हैं कि यह पक्षी नवम्बर-दिसम्बर माह में पश्चिमी तट के वनों से प्रवास पर निकलता है और फरवरी-मार्च तक यहां पहुंचता है। अप्रैल-मई तक प्रवास पर रहने के बाद वापस लौट जाता है। वर्मा कहते हैं कि इंडियन पिट्टा का यहां के वनों में प्रवास पर आना यह संदेश देता है कि यहां के वन भी पश्चिमी तट जितने ही घने हैं। उन्होंने कहा कि बदलते पारिस्थिकी तंत्र के बावजूद इंडियन पिट्टा का नैनीताल के जंगलों में पहुंचना न सिर्फ रोमांचक है, बल्कि यह पर्यावरणविदों के लिए भी प्रसन्नता का विषया है।

पक्षियों का पर्यटन स्थल भी है नैनीताल
नैनीताल। नैनीताल मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षियों का भी पर्यटन स्थल है। देश-दुनिया की सैकड़ों पक्षी प्रजातियां प्रतिवर्ष नैनीताल व इसके आसपास के क्षेत्रों में प्रवास पर आती हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार देश भर में पाई जाने वाली 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 तो यहां मिलती ही हैं, साथ ही देश में प्रवास पर आने वाली 400 में से 200 से अधिक विदेशी पक्षी प्रजातियां भी यहां आती हैं। इनमें ग्रे हैरोन, शोवलर, पिनटेल, पोर्चड, मलार्ड, गागेनी टेल, रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला, 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार की क्रेन, स्टीपी ईगल, अबाबील आदि प्रमुख हैं।
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Tuesday, April 20, 2010

विश्व भर के पक्षियों का जैसे तीर्थ है नैनीताल






नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध पहचान पर्वतीय पर्यटन नगरी के रूप में ही की जाती है, इसकी स्थापना ही एक विदेशी सैलानी पीटर बैरन ने १८ नवम्बर १८४१ में की थी, और तभी से यह  नगर देश-विदेश के सैलानियों का स्वर्ग है. लेकिन इससे इतर इस नगर की एक और पहचान विश्व भर में है, जिसे बहुधा कम ही लोग शायद जानते हों. इस पहचान के लिए नगर को न तो कहीं बताने की जरूरत है, और नहीं महंगे विज्ञापन करने की. दरअसल यह पहचान मानव नहीं वरन पक्षियों के बीच है. पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार देश भर में पाई जाने वाली 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 यहां मिलती हैं। प्रवासी पक्षियों या पर्यटन की भाषा में पक्षी सैलानियों की बात करें तो देश में कुल आने वाली 400 पक्षी प्रजातियों में से 200 से अधिक यहां आती हैं, जबकि 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों का यहां प्राकृतिक आवास है। यही आकर्षण है कि देश दुनियां के पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में केवल पक्षियों के दीदार को यहाँ पहुंचाते हैं. इस प्रकार नैनीताल को विश्व भर के पक्षियों का तीर्थ कहा जा सकता है



  • देश की 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 हैं यहां
  • देश में आने वाली 400 प्रवासी प्रजातियों में से 200 से अधिक भी आती हैं यहां
  • स्थाई रूप से 200 प्रजातियों का प्राकृतिक आवास भी है नैनीताल
  • आखिरी बार 'माउनटेन क्वेल' को भी नैनीताल में ही देखा गया था 
नैनीताल में पक्षियों की संख्या के बारे में यह दावे केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी पार्क भरतपुर राजस्थान के मशहूर पक्षी गाइड बच्चू सिंह ने किऐ हैं।वह गत दिनों ताईवान के लगभग १०० पक्षी प्रेमियों को जयपुर की संस्था इण्डिविजुअल एण्ड ग्रुप टूर्स के मनोज वर्धन के निर्देशन में यहाँ लाये थे. इस दौरान ताईवान के पक्षी प्रेमी जैसे ही यहाँ पहुंचे, उन्हें अपने देश की ग्रे हैरौन एवं चीन, मंगोलिया की शोवलर, पिनटेल, पोचर्ड, मलार्ड व गार्गनी टेल जैसी कुछ चिड़ियाऐं तो होटल परिसर के आसपास की पहाड़ियों पर ही जैसे उनके इन्तजार में ही बैठी हुई मिल गईं। उन्हें यहां रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला आदि भी मिलीं। मनोज वर्धन के अनुसार वह कई दशकों से यहाँ विदेशी दलों को पक्षी दिखाने ला रहे हैं. यहां मंगोली, बजून, पंगोट, सातताल व नैनीझील एवं कूड़ा खड्ड पक्षियों के जैसे तीर्थ ही हैं। उनका मानना है कि अगर देश-विदेश में नैनीताल का इस रूप में प्रचार किया जाऐ तो यहां अनंत संभावनायें हैं। अब गाइड बच्चू सिंह की बात करते हैं। वह बताते हैं जिम कार्बेट पार्क, तुमड़िया जलाशय, नानक सागर आदि का भी ऐसा आकर्षण है कि हर प्रवासी पक्षी अपने जीवन में एक बार यहां जरूर आता है।वह प्रवासी पक्षियों का रूट बताते हैं। गर्मियों में लगभग 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार की क्रेन सहित सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी साइबेरिया के कुनावात प्रान्त स्थित ओका नदी में प्रजनन करते हैं। यहां सितम्बर माह में सर्दी बढ़ने पर और बच्चों के उड़ने लायक हो जाने पर यह कजाकिस्तान-साइबेरिया की सीमा में कुछ दिन रुकते हैं और फिर उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान होते हुए भारत आते हैं। इनमें से लगभग 600 पक्षी प्रजातियां लगभग एक से डेड़ माह की उड़ान के बाद भारत पहुंचती हैं, जिनमें से 200 से अधिक उत्तराखण्ड के पहाड़ों और खास तौर पर अक्टूबर से नवंबर अन्त तक नैनीताल पहुँच जाते हैं। इनके उपग्रह एवं ट्रांसमीटर की मदद से भी रूट परीक्षण किए गऐ हैं। 
इस प्रकार दुनियां की कुल साढ़े दस हजार पक्षी प्रजातियों में से देश में जो 1100 प्रजातियां भारत में हैं उनमें से 600 से अधिक प्रजातियां नैनीताल में पाई जाती हैं। यहां उन्हें अपनी आवश्यकतानुसार दलदली, रुके या चलते पानी और जंगल में अपने खाने योग्य कीड़े मकोड़े और अन्य खाद्य वनस्पतियां आसानी से मिल जाती हैं। नैनीताल की "शेर-का-डांडा" पहाडी में ही १८७६ में दुनिया में आख़िरी बार 'माउंटेन क्वेल' यानि "काला तीतर" देखने के भी दावे किये जाते हैं.