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Thursday, April 18, 2013

बसने के चार वर्ष के भीतर ही देश की दूसरी पालिका बन गया था नैनीताल


सफाई व्यवस्था सुनियोजित करने को बंगाल प्रेसीडेंसी एक्ट के तहत 1845 में हुआ था गठन
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, देश ही नहीं दुनिया में नैनीताल ऐसा अनूठा व इकलौता शहर होगा जिसे बसने के चार वर्ष के अंदर ही नगर पालिका का दर्जा मिल गया था। दूर की सोच रखने वाले इस शहर के अंग्रेज नियंताओं ने शहर के बसते ही इसकी साफ-सफाई को सुनियोजित करने के लिए बंगाल प्रेसीडेंसी एक्ट-1842 के तहत इसे 1845 में नगर पालिका का दर्जा दे दिया गया था। 
विदित है कि नैनीताल नगर को वर्तमान स्वरूप में बसाने का श्रेय अंग्रेज व्यवसायी पीटर बैरन को जाता है, जो 18 नवम्बर 1841 को यहां आया लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसके तीन वर्ष के उपरांत 1843-44 में ही, जब नगर की जनसंख्या कुछ सौ ही रही होगी, नगर की साफ-सफाई के कार्य को सुनियोजित करने के लिए इसे नगर पालिका बनाने का प्रस्ताव नगर के तत्कालीन नागरिकों ने कर दिया था। अंग्रेज लेखक टिंकर की पुस्तक "लोकल सेल्फ गवर्नमेंट इन इंडिया, पाकिस्तान एंड वर्मा" के पेज 28-29 में नैनीताल के देश की दूसरी नगर पालिका बनने का रोचक जिक्र किया गया है। पुस्तक के अनुसार उस दौर में किसी शहर की व्यवस्थाओं को सुनियोजित करने के लिए तत्कालीन नार्थ-वेस्ट प्रोविंस में कोई प्राविधान ही नहीं थे। लिहाजा 1842 में बंगाल प्रेसीडेंसी के लिए बने बंगाल प्रेसीडेंसी अधिनियम-1842 के आधार पर इस नए नगर को नगर पालिका का दर्जा दे दिया गया। इससे पूर्व केवल मसूरी को (1842 में) नगर पालिका का दर्जा हासिल था, इस प्रकार नैनीताल को देश की दूसरी नगर पालिका होने का सौभाग्य मिल गया। अधिनियम के तहत 7 जून 1845 को नगर की व्यवस्थाएं देखने के लिए कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर मेजर लूसिंग्टन की अध्यक्षता में मेजर जनरल सर डब्लू रिचर्ड्स, मेजर एचएच आरवॉड, कैप्टेन वाईपी पोंग व पी वैरन की पांच सदस्यीय समिति  गठित कर दी गयी।  आगे 1850 में म्युनिसिपल एक्ट आने के बाद तीन अक्टूबर 1850 को यहां विधिवत नगर पालिका बोर्ड का गठन हुआ। नगर के बुजुर्ग नागरिक व म्युनिसिपल कमिश्नर (सभासद) रहे गंगा प्रसाद साह बताते हैं कि उस दौर में नियमों का पूरी तरह पालन सुनिश्चित किया जाता था। सेनिटरी इंस्पेक्टर घोड़े पर सवार होकर रोज एक-एक नाले का निरीक्षण करते थे। माल रोड पर यातायात को हतोत्साहित करने के लिए चुंगी का प्राविधान किया गया था। गवर्नर को चुंगी से छूट थी। एक बार अंग्रेज लेडी गवर्नर बिना चुंगी दिए माल रोड से गुजरने का प्रयास करने लगीं, जिस पर तत्कालीन पालिकाध्यक्ष राय बहादुर जसौत सिंह बिष्ट ने लेडी गवर्नर का 10 रुपये का चालान कर दिया था।

नैनीताल नगर पालिका की विकास यात्रा

  • 1841 में पहला भवन पीटर बैरन का पिलग्रिम हाउस बनना शुरू ।
  • तल्लीताल गोरखा लाइन से हुई बसासत की शुरूआत। 
  • 1845 में मेजर लूसिंग्टन, 1870 में जे मैकडोनाल्ड व 1845 में एलएच रॉबर्टस बने पदेन अध्यक्ष। 
  • 1891 तक कुमाऊं कमिश्नर होते थे छह सदस्यीय पालिका बोर्ड के पदेन अध्यक्ष व असिस्टेंट कमिश्नर उपाध्यक्ष। 
  • 1891 के बाद डिप्टी कमिश्नर (डीसी) ही होने लगे अध्यक्ष। 
  • 1900 से वैतनिक सचिव होने लगे नियुक्त, बोर्ड में होने लगे पांच निर्वाचित एवं छह मनोनीत सदस्य। 
  • 1921 से छह व 1927 से आठ सदस्य होने लगे निर्वाचित। 
  • 1934 में आरई बुशर बने पहले सरकार से मनोनीत गैर अधिकारी अध्यक्ष (तब तक अधिकारी-डीसी ही होते थे अध्यक्ष)। 
  • 1941 में पहली बार रायबहादुर जसौत सिंह बिष्ट जनता से चुन कर बने पालिकाध्यक्ष। 
  • 1953 से राय बहादुर मनोहर लाल साह रहे पालिकाध्यक्ष। 
  • 1964 से बाल कृष्ण सनवाल रहे पालिकाध्यक्ष। 
  • 1971 से किशन सिंह तड़ागी रहे पालिकाध्यक्ष। 
  • 1977 से 1988 तक डीएम के हाथ में रही सत्ता। 
  • 1977 तक बोर्ड सदस्य कहे जाते थे म्युनिसिपल कमिश्नर, जिम कार्बेट भी 1919 में रहे म्युनिसिपल कमिश्नर। 
  • 1988 में अधिवक्ता राम सिंह बिष्ट बने पालिकाध्यक्ष। 
  • 1994 से 1997 तक पुन: डीएम के हाथ में रही सत्ता। 
  • 1997 में संजय कुमार :संजू", 2003 में सरिता आर्या व 2008 में मुकेश जोशी बने अध्यक्ष।
यह भी पढ़ें: नैनीताल क्या नहीं, क्या-क्या नहीं, यह भी, वह भी, यानी सचमुच स्वर्ग 

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